खोरठा साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर शिवनाथ प्रमाणिक नहीं रहे

♦Dr. BIRENDRA KUMAR MAHTO ♦
रांची : खोरठा साहित्य जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर शिवनाथ प्रमाणिक अब हमारे बीच नहीं रहे। खोरठा के वरिष्ठ साहित्यकार शिवनाथ प्रमाणिक का आज सुबह 10 बजे 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। स्व शिवनाथ प्रमाणिक का जन्म बोकारो जिले के बैधमारा गांव में सन 13 जनवरी 1949 को एक साधारण परिवार में हुआ था। वह पूरे खोरठा क्षेत्र में ’माणिक’ के नाम से विख्यात थे। माणिक जी बचपन से ही नटखट, चंचल और लिखाई – पढ़ाई में काफी रूचिकर थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहने के बावजूद उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई को पूरी की। सन 1985 ईस्वी में वह एक निजी कम्पनी में नियुक्त हुए। तमाम पारिवारिक व अन्य दिक्कतों के बावजूद साहित्यिक लेखन को लगातार प्रवाहित करते रहे और खोरठा साहित्य जगत में साहित्य की हर विधा में एक से बढ़कर एक रचनाएं कीं। इतना ही नहीं वह गांव-गांव जाकर लोगों को खोरठा भाषा साहित्य के विकास से अवगत कराते रहे। कई जगहों में खोरठा भाषा से जुड़ी संस्थाओं का गठन किया तथा कुछ ऐसी संस्था जो कई वर्षो से शिथिल पड़ी हुई थी उसका पुनर्गठन भी हुआ।
संस्थानों में योगदान 
माणिक जी खोरठा भाषा के विकास के लिए कई संस्थानों से जुड़े रहे। कई संस्थाओं में कार्यभार और कार्यकारी सदस्य के रूप योगदान किया, यथा – सृजन संस्थान , जनवादी लेखन संग , मानववादी साहित्यकार संग , छोटानागपुर खोरठा विकास परिषद् , विस्थापित कल्याण समिति, बोकारो खोरठा कमिटी , खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद के अलावा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी जुड़े रहे। भाषा आंदोलन में हमेशा सक्रिय देखे गये।
प्रमाणिक जी खोरठा के वीर रस के कवियों में से एक थे। इनकी भाषा सरल और ठेठ खोरठा में देखने को मिलती है। वीर रस की कुछ पंक्ति निम्न है :

“खिजल हडरें लहर-लहर गीदर चले पारे
डहर खोइज के चले गले लहर चले पारे ।
चल डहरे चल रे , डहर बनाइ चल रे …
जीनगीक डहरें कांटा, कांटा उठाय चल रे ।।
चल डहरे चल रे , डहर बनाय चल रे ,
चल डहरे चल रे , डहर बनाय चल रे ।।“

माणिक जी की प्रमुख कृति 
’रूसल पुटुस’ का संकलन और संपादन 1985
(खोरठा कविता संकलन)
दामुदरेक कोराञ 1987
तातल आर हेमाल कविता संकलन 1998
खोरठा लोक साहित्य 2004
मइछगंधा खोरठा महाकाव्य 2012
खोरठा – काव्य का स्वरूप 2019
माटीक रंग 2019 में प्रकाशित हुई है। हालांकि उस वक्त पुस्तक प्रकाशित करने की उतनी सुविधा नहीं थी जितनी की आज है।

सम्मान व पुरस्कार 
खोरठा साहित्य के आकाश में माणिक जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। खोरठा साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए हिन्दी साहित्य संगम बोकारो और काव्यलोक जमशेदपुर से ’काव्य भूषण’ सम्मान, परिवर्तन संस्था चतरा के द्वारा ’परिवर्तन विशेष’ पुरस्कार अखिल झारखण्ड खोरठा विकास परिषद , भेंड़रा द्वारा सपुत सम्मान, झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2007 में ’सांस्कृतिक सम्मान’ , ’सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2008 में खोरठा भाषा साहित्य संस्कृति परिषद, रामगढ़ से ’श्रीनिवास पानुरी स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

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