झारखंड में रिश्वतखोरों पर आफत की बिजली

कानून की किताबों में रिश्वत लेना और देना दोनों जुर्म है। रिश्वत एक ऐसी बीमारी है,जिससे किसी भी सरकार के सुशासन और उसके दावे की सचाई का पता चल सकता है। अगर कहीं रिश्वत का बोलबाला हो तो समझिये सबकुछ बेहतर नहीं है। दूसरी ओर कहीं रिश्वत लेते लोग डर रहे हों तो सुशासन के दावे सच के नजदीक दिखाई पड़ते हैं। व्यवस्था पर लोगों का भरोसा हो, इस दिशा में झारखंड में भी कार्य किये गये हैं, लेकिन लंबा सफर तय करना अभी शेष है। लहरन्यूज डॉट कॉम के विशेष संवाददाता मृत्युंजय प्रसाद की रपट –

रांची : घूस की रकम से घर में सुख, समृद्धि और शांति लाने की चाह रखने वाले रिश्वतखोरों पर झारखंड की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम कहर बन कर टूट रही है। खासबात यह है कि दूरदराज के ग्रामीण भी अब रिश्वतखोरों की शिकायत लेकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यालयों में दस्तक दे रहे हैं। रिश्वत लेते अधिकारी से लेकर चपरासी तक रंगेहाथ दबोचे जा रहे है। हां, बड़ी मछलियों के दबोचे की प्रतीक्षा सभी को है। यह संभव हो पाएगा या नहीं यह देखने वाली बात होगी। बहरहाल झारखंड बनने के बाद वर्ष 2016 तक राज्य सरकार के 463 रिश्वतखोर कर्मियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है। कई रिश्वतखोरों को सजा भी मिल चुकी है। वर्ष 2017 में मार्च महीने तक सिर्फ तीन महीने मे ही करीब 38 सरकारी कर्मियों की गिरफ्तारी घूस लेते रंगेहाथ हुई है।

गिरफ्तार रिश्वतखोरों के आंकड़े पर एक नजर    

गौर करें तो घूस लेते हाल के महीने में सबसे अधिक गिरफ्तारी नक्सल प्रभावित जिलों व क्षेत्रों से हुई है। लिहाजा घूस लेते दबोचे गये राज्य सरकार के अधिकारियों व कर्मचारियों के वर्षवार आंकड़े पर नजर डालें तो वर्ष 2001 में 23, वर्ष 2002 में 64, वर्ष 2003 में 26, वर्ष 2004 में 12, 2005 में 6, वर्ष 2006 में 15, वर्ष 2007 में 14, वर्ष 2008 में 24, वर्ष 2009 में 16, वर्ष 2010 में 43, वर्ष 2011 में 14, वर्ष 2012 में 29, वर्ष 2013 में 25, वर्ष 2014 में 36, वर्ष 2015 और 2016 में 58-58 घूस लेते कर्मियों की गिरफ्तारियां हो चुकी है। वर्ष 2017 में मार्च महीने में ही यह आंकड़ा 38 के करीब पहुंच चुका है। सूत्र तो दावा कर रहे हैं कि रिश्वतखोरों की गिरफ्तारी के मामले में वर्ष 2017 में सभी वर्षों का रिकार्ड भी टूट सकता है। इस वर्ष रिश्वतखोरों की गिरफ्तारी का शतक भी लगाये जाने के कयास लगाये जा रहे हैं।

एसीबी के पास लोगों के पहुंचने की वजह

सरकार की ओर से यह कोशिश की गयी है कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो लोगों तक पहुंचे और पीड़ित लोग भी ब्यूरो के कार्यालय में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ दस्तक दें। इसके लिए कई कदम भी उठाए गये हैं। वर्ष 2015 में निगरानी ब्यूरो का नाम बदल कर झारखंड भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो एसीबी कर दिया गया। इसकी वजह यह बतायी गयी कि आमलोगों को यह पता होना चाहिए कि निगरानी ब्यूरो भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए कार्य करने वाली संस्था है। भ्रष्टाचार के शिकार लोगों को दूर-दराज के क्षेत्रों से पहले रांची आना होता था और तब फिर निगरानी थाने में शिकायत व सूचना दर्ज करानी होती थी। यह उनके लिए काफी खर्चीला और असुविधाजनक स्थिति थी। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को राज्यव्यापी और प्रभावी बनाने के लिए रांची स्थित ब्यूरो मुख्यालय के अतिरिक्त राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के छह क्षेत्रीय कार्यालय खोले गये। ब्यूरो प्रमंडलीय मुख्यालय रांची का कार्यक्षेत्र रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला और सिमडेगा तय किया गया। पलामू के कार्यक्षेत्र में पलामू, लातेहार और गढ़वा को रखा गया। इसी प्रकार दुमका के अधीन दुमका, साहेबगंज, गोड्डा, देवघर, जामतारा व पाकुड़ है। हजारीबाग के अधीन हजारीबाग, कोडरमा, चतरा और रामगढ़ की ब्यूरो कार्यालय टीम कार्य कर रही है। चाईबासा के अंतर्गत पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां जिले का कार्यक्षेत्र निर्धारित किया गया है। धनबाद ब्यूरो प्रमंडलीय मुख्यालय में धनबाद, बोकारो और गिरिडीह जिले की ब्यूरो टीम काम करती है। रांची स्थित ब्यूरो मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में एक स्पेशल सेल की भी स्थापना हुई हैं। इसके लिए अलग से एक थाना भी है।

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