डीएसपीएमयू : कुड़मालि भाषा सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा-यह अत्यंत समृद्ध भाषा है

♦Laharnews.com Correspondent♦
  रांची : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के तत्वावधान में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची में दो दिवसीय कुड़मालि भाषा सम्मेलन के अंतिम दिन आज पहले दिन की भांति 4 अलग-अलग विषयों पर 4 सत्र में आलेख पाठ प्रस्तुत किये गये। इस सत्र में डॉ. गीता कुमारी सिंह ने कुड़मालि के परंपरागत लोकगीत विषय पर आलेख प्रस्तुत किया। दूसरा कुड़मालि के सहायक प्राध्यापक कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा से प्रो. सुबास चंद्र महतो ने कुड़मालि समाज और संस्कृति में पाये जाने वाले गीतों में नातेदारी पर आलेख प्रस्तुत किया। तीसरा नंद किशोर महतो ने कुड़मालि गीतों पर प्रकृति चित्रण विषय पर में किस प्रकार कुड़मालि समाज और संस्कृति प्रकृति के संरक्षक, संवधर्क के रूप में भूमिका निभा रही है। इसको बतलाया। इस सत्र के सत्राध्यक्ष डॉ. राजाराम महतो ने कहा- कुड़मालि एक अत्यंत समृद्ध भाषा है।
आज का दूसरा सत्र ‘कुड़मालि पारिवारिक गीत’ पर केंद्रित था। इसमें तीन विद्वानों में पहला मारवाड़ी कॉलेज के कुड़मालि भाषा के विभागाध्यक्ष डॉ. वृंदावन महतो ने कुड़मालि समाज एवं संस्कृति में पाये जाने वाले खेल गीत पर चर्चा करते हुए कहा कि कुड़मालि भाषा, संस्कृति में ‘ड़’ ध्वनि की प्रधानता है जो कि शरीर के विभिन्न अंग से लेकर कृषि कार्य के विभिन्न विधि विधान के वाचक शब्द में भी ड़ ध्वनि की ही प्रमुखता व्यवहारिक रूप से देखने को मिलती है। इसमें खेल गीतों के माध्यम से सभा को खेलमय बनाया। दूसरा डॉ. मानसिंह महतो ने कुड़मालि गीतों में नारी र्सौंदयीर्करण को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया। तीसरा कथावाचक के रूप कुड़मालि के प्राध्यपिका नीलु कुमारी ने कुड़मालि साहित्य जगत में प्रसिद्ध महिला लेखिका पर प्रस्तुत कर बतलाये कि हमें महिलाओं को घर परिवार से निकल कर साहित्य जगत में आने की परंपरा बनाने की बात कही। इस सत्र के सत्राध्यक्ष एवं आयोजक कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परमेश्वरी प्रसाद ने कुड़मालि गीतों में नारी ससक्तिकरण पर जोर दिया और कहा कि यह कुड़मालि गीत नारी ससिक्तिकरण को लेकर पहले से ही काफी सजग एवं जागृत है।
विष्णुपद महतो ने कुड़मालि भाषा के विकास में संचार माध्यम के योगदान पर चर्चा की। डॉ. रितेश कुमार महतो ने कुड़मालि समाज एवं संस्कृति प्रचलित लोक नृत्य जो कि छउ, नटुआ, झुमर, माछानि के रूप में देखने को मिलता है के सरंक्षण पर जोर दिया। वहीं इस विश्वविद्यालय के कुड़मालि विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो ने कुड़मालि भाषा में प्रकाशित अब तक के पत्र-पत्रिकाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि कुड़मालि पत्रिका साहित्य जगत में अब तक 40 से ज्यादा पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। अशोक कुमार पुराण ने कुड़मालि संस्कृति में पाये जाने वाले लोक नृत्य पर अपना आलेख पाठ प्रस्तुत किया।
मंच संचालन कुड़मालि विभाग के प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो ने किया और धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी की ओर आये एन. सुरेश बाबु ने करते हुए कहा कि मुझे कुड़मालि संस्कृति की झलक देखकर बहुत ही खुशी हो रही है।
इस कार्यक्रम में झारखंड, बंगाल एवं ओडिशा से आये सैंकड़ो भाषा प्रेमी, साहित्य, प्रेमी समाज के बुद्धिजीवि वर्ग के साथ आयोजक साहित्य अकादमी की ओर से उपसचिव, रिजनल सेंटर कोलकाता से आये विश्वजीत राय, छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय मुंबई के कुलपति प्रो. केशरी लाल वर्मा सभी सत्र में उपस्थित थे। कायर्क्रम के अंतिम सत्र में साहित्य अकादमी के सदस्यों, प्रतिभागी एवं विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा नृत्य गीत प्रस्तुत कर पूरे हॉल को संगीतमय बना दिया। इस अवसर पर कुड़मालि भाषा साहित्य से जुड़े दो पुस्तकों का लोकापर्ण हुआ। जिनमें रतन कुमार महतो के आलअ झलअमलअ और डॉ. मानसिंग महतो के हिंदी साहित्य और कुरमाली के राश लीला का तुलनात्मक अध्ययन।

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