झारखंड में पंचायत चुनाव जिस मकसद से कराया गया था, वह पूरा होता नहीं दिख रहा है। पंचायत चुनाव के सवा साल बाद लोगों की उम्मीदें टूटने लगी हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि इस बात को मानते हैं कि उनके अधिकार की बात सिर्फ कानून के पन्नों में सिमट कर रह गयी है। इस वजह से विकास भी बाधित है। सरकार से लेकर अफसर तक उनकी बातों को ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे में सत्ता के विकेन्द्रीकरण और समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास को ले जाने की बात अधूरी है। गांव के मुखिया कुछ हद तक अपने अधिकार उपयोग कर रहे हैं। बहरहाल युवा जनप्रतिनिधि और रांची जिला परिषद के मौजूदा अध्यक्ष सुकरा सिंह मुंडा सीधे-सीधे आरोप लगाते हैं कि अघोषित तौर पर राज्य सरकार उनके अधिकारों पर कैंची चला रही है। ऐसे में एकबार फिर पंचायत प्रतिनिधि आंदोलन के मूड में हैं। पंचायत चुनाव और विभिन्न मुद्दों पर रांची जिला परिषद के अध्यक्ष सुकरा सिंह मुंडा से ‘लहरन्यूज डाट कॉम ’के विशेष संवाददाता मृत्युंजय प्रसाद की खास बातचीत –
कार्यकाल के सवा साल बीत गये, आपकी क्या उपलब्धियां रही ?
राज्य सरकार के द्वारा अबतक कोई अधिकार दिया ही नहीं गया है। काम करना चाहते हैं लेकिन फंड और अधिकार के बिना ग्रामीण जनता का कोई भी काम नहीं कर पा रहे हैं।
तो पंचायत से जुड़े कौन से अधिकार आपको नहीं दिये गये?
राज्य सरकार के द्वारा कृषि एवं गन्ना विकास,मानव संसाधन विकास विभाग(प्राथमिक शिक्षा), स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण, समाज कल्याण महिला एवं बाल विकास विभाग,पशुपालन एवं मत्स्य विभाग,पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, जल संसाधन विभाग,उधोग विभाग, खाध,सार्वजनिक वितरण एवं उपभोकता मामले ,ग्रामीण विकास विभाग, कला संस्कृति खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग,कल्याण विभाग, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, खान एवं भूत्तव कुल 14 विभागों के अनुश्रवण एवं वित्तीय अधिकार पंचायतों को सौंपे जाने हैं, लेकिन झारखंड सरकार के द्वारा ये अधिकार अब तक हमें नहीं दिये गये।
आपको अधिकार नहीं मिले, काम कैसे करेंगे ?
यह समस्या सभी निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के साथ है। हम अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए काफी सचेत हैं। मेरे अलावा राज्य के सभी पंचायत प्रतिनिधि उचित प्लेटफार्म पर एवं राज्य के मुख्यमंत्री से भी मिलकर पंचायतों को अधिकार सौंपे जाने की मांग करते रहे हैं इसके बाद भी पंचायतों को अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है । इस वजह से ग्रामीण विकास के कार्य प्रभावित हो रहे हैं। राज्य के सभी पंचायत प्रतिनिधि अधिकार को लेकर आंदोलन एकबार फिर आंदोलन करेंगे।
ग्रामीण विकास कार्यां में पंचायतों की क्या भूमिका है ?
गांवों के सभी विकास कार्यां में पंचायतों की भूमिका अहम होती है। प्रत्येक माह की 26 तारीख को हर पंचायतों में ग्रामसभा की बैठक होनी है,जिसमें गांवों के विकास के लिए योजनाओं का चयन किया जाना है। हमलोग बैठक करते हैं और योजनाओं का चयन भी करते हैं, लेकिन नौकरशाही एवं बिचौलियों के हावी होने के कारण ग्रामसभा द्वारा चयनित योजनाएं धरी रह जाती हैं और जिन योजनाओं से बिचौलिये को लाभ होता है वैसी योजनाएं शुरू हो जाती हैं। इसी तरह लालकार्डधारियों के चयन में भी होता है। हमलोग ग्रामसभा के माध्यम से जरुरतमंद लोगों का चयन लालकार्ड के लिए करते हैं, लेकिन बिचौलियों के हावी होने से लालकार्ड किसी दूसरे लोगों का बन जा रहा है, जिसका नाम कभी ग्रामसभा के माध्यम से भेजा ही नही गया है।
विकास के लिए आपकी क्या प्राथमिकताएं हैं ?
पिछले दिनों मैं राज्य के सभी जिला परिषद अध्यक्ष एवं उपाध्यक्षों के साथ तेलंगाना के दौरे पर गया था । वहां पंचायतों एवं सरकार के द्वारा किसानों के लिए जो कार्य किये गये हैं, उससे मैं काफी प्रभावित हूं। मेरी इच्छा है कि किसानों को सिंचाई के लिए पानी और बिजली मिले। किसानों को पानी और बिजली मिल जाने पर झारखंड देश का अव्वल राज्य बन जाएगा। एक किसान का बेटा होने के नाते यहां के किसानों की मेहनत करने की क्षमता को मैंने नजदीक से देखा है। यहां के किसानों को आजादी के इतने वर्षों बाद भी वही लाठ-खूंटा के सहारे सिंचाई करते देखता हूं तो काफी तकलीफ होती है।
तेलंगाना में सरकार की ओर से पंचायत प्रतिनिधियों को क्या अधिकार और सुविधाएं दी गयी हैं ?
तेलंगाना में सरकार ने पंचायतों को कई अधिकार दिये हैं। उन अधिकारों का प्रयोग कर वहां के पंचायत प्रतिनिधि ग्रामीणों की समस्याओं को हल करने में सक्षम हैं। जहां तक सुविधा की बात है झारखंड में जिला परिषद के अध्यक्ष को मानदेय के रुप में 10 हजार रुपये मिलता है वहीं तेलंगाना के जिला परिषद अध्यक्ष को प्रतिमाह एक लाख रुपये मानदेय दिया जाता है।