वर्ष 1769 को अपने जन्मदिन के मौके पर रघुनाथ महतो ने अंग्रेजों के विरूद्ध नीमडीह में विशाल सभा बुलायी और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका। देखते ही देखते करीब एक हजार नौजवान उनके आंदोलन में शामिल हो गये और अंग्रेजों से लोहा लेने लगे। नीमडीह के सभास्थल को आज रघुनाथपुर के नाम से जाना जाता है। पांच अप्रैल को उनका शहादत दिवस मनाया जाएगा। इसी कड़ी में पेश है – ‘लहरन्यूज डॉट कॉम ’के विशेष संवाददाता मृत्युंजय प्रसाद की खास रिपोर्ट –
रांची : झारखंड की राजधानी रांची से 55 किलोमीटर दूर सिल्ली प्रखंड के लोटा कीता गांव के पौराणिक शिव मंदिर के समीप गड़े पत्थर अंग्रेजों के विरूद्ध लडाई लडने वाले चुआड़ विद्रोह के महानायक शहीद रघुनाथ महतो की शहादत की कहानी बयां करती है। रघुनाथ महतो वैसे सपूत थे , जिन्होंने 1760 के आसपास अंग्रेजों के विरूद्ध लडाई शुरू कर उनकी नींद हराम कर दी थी। इतिहास में रघुनाथ महतो के नेतृत्व में लड़ी गई इस लडाई को चुआड़ विद्रोह के नाम से जाना जाता है। रघुनाथ महतो का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा के दिन 1738 ई को वर्तमान जिला सरायकेला खरसांवा के नीमडीह थाना अंतर्गत घुटियाडीह गांव में हुआ था। इनके पिता काशीनाथ महतो 12 मौजा के जमींदार परगनैत थे।
शोषण और अन्याय के खिलाफ थी लड़ाई
बचपन से ही रघुनाथ महतो शोषण एवं अन्याय के खिलाफ थे। बताया जाता है कि एक बार एक अंग्रेज तहसीलदार रघुनाथ महतो के पिता काशीनाथ महतो से उलझ पडे़ और उन्हें काफी अपमानित किया था। रघुनाथ महतो को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और तहसीलदार को मारते पीटते गांव से बाहर खदेड़ दिया। अंग्रेजों को जब रघुनाथ महतो के संबंध में जानकारी मिली तो उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस भेजी गयी, लेकिन वह पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सके। रघुनाथ महतो ने उन अंग्रेज पुलिस वालों को मारपीट कर खदेड़ दिया और खाली हाथ लौटने को मजबूर कर दिया। वह अंग्रेजों के सिर में लगातार दर्द पैदा कर रहे थे। अंग्रेजों ने भी उन्हें पकड़ने के लिए कई चालें चलीं। रघुनाथ महतो को पकड़वाने में मदद करने वालों के लिए अंग्रेजों ने पुरस्कार घोषित किये। इधर रघुनाथ महतो भी अंग्रेजों की चाल को भांप कर सतर्क हो गये और अपनी योजना के अनुसार अंग्रेजों को सबक सिखाने लगे। 1769 को अपने जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध नीमडीह में विशाल सभा बुलायी और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका। देखते ही देखते करीब एक हजार नौजवान उनके आंदोलन में शामिल हो गये और अंग्रेजों से लोहा लेने लगे। नीमडीह के सभास्थल को आज रघुनाथपुर के नाम से जाना जाता है। धीरे-धीरे रघुनाथ महतो का आंदोलन जोर पकड़ने लगा और आंदोलन तत्कालीन मानभूम से लेकर धालभूम’ नीमडीह ’ पातकोम’ झरिया’ पंचेत आदि क्षेत्रों में फैल गया।
चुआड़ विद्रोह का केन्द्र था सिल्ली और झालदा
1776 में चुआड़ विद्रोह का केन्द्र सिल्ली एवं झालदा का क्षेत्र था। इस क्षेत्र में आंदोलनकारियों की अगुवाई झगड़ महतो एवं डोमन भूमिज कर रहे थे। बताया जाता है कि एक बार झालदा के पास आंदोलनकारियों एवं अंग्रेजी फौज के बीच हुई भिडं़त में झगड़ महतो शहीद हो गये और डोमन भूमिज को पुलिस कैद कर पुरूलिया ले गयी। इस घटना के बाद चुआड़ विद्रोह की आग सिल्ली, सोनाहातु, बुण्डू, तमाड़ और रामगढ क्षेत्रों में फैल गयी। दूसरी ओर भारत के तत्कालीन गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग ने छोटानागपुर खासकर जंगल महल और रामगढ के कमिश्नर से रघुनाथ महतो और आंदोलनकारियों से बातचीत कर समस्या का समाधान कारने का आदेश दिया। लेकिन जमींदारों ने गर्वनर जनरल के आदेश को नहीं मानने के लिए कमिश्नर पर दबाव बनाया, जबकि विद्रोह के बढ़ने के साथ ही कुछ जमींदार अपने स्वार्थ के लिए अंग्रेजों से मिल गये।
देश के लिए शहीद हो गये महान सपूत
वह तारीख पांच अप्रैल 1778 की थी, जब रघुनाथ महतो सिल्ली प्रखंड के लोटा ग्राम स्थित गडतैतेर नामक गुप्त स्थान पर विद्रोहियों के साथ बैठक कर रहे थे। बैठक के बाद रघुनाथ महतो अपने साथियों के साथ बंदूक लूटने के लिए रामगढ पुलिस बैरक में हमला करने लिए जाने ही वाले थे कि गुप्तचरों के माध्यम से इस योजना की जानकरी अंग्रेजों को मिल गयी। अंग्रेज पुलिस अपने मिशन के तहत रघुनाथ महतो एवं अन्य विद्रोहियों पर हमला बोला। अंग्रेज पुलिस बैठक स्थल को पूरी तरह से घेरकर भीषण गोलीबारी करने लगी। साथ ही अंग्रेजों की ओर से तलवार, फरसा आदि का भी प्रयोग किया जाने लगा, जिससे करीब एक दर्जन देशभक्त विद्रोही शहीद हो गये। अपने साथियों के साथ रघुनाथ महतो भी बैठक स्थल से नाला पार कर कीता गांव के जमींदार के घर की ओर दौडे़, लेकिन अंग्रेज पुलिस ने पीछा कर उनपर गोली, बरछा एवं बल्लम से एकसाथ हमला कर उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। रघुनाथ महतो के शहीदस्थल पर गडे़ पत्थर आज भी उनकी वीरता, शहादत की हमें याद दिलाते हैं। बताया जाता है कि एक पत्थर रघुनाथ महतो की स्मृति में, जबकि दूसरा पत्थर उनके सहयोगी बुली महतो की याद में गाड़े गये थे। इसके साथ ही कीता जाहेर स्थान के पश्चिम में भी दो पत्थर के अलावा और कई पत्थर शहीदों की स्मृति में गाडे़ गये हैं। घटनास्थल पर शहीदों की स्मृति में गडे़ पत्थरों को देखने से चुआड़ विद्रोह की याद ताजा हो जाती है। गौरतलब है कि रघुनाथ महतो एवं उनके साथियों के शहादत दिवस पर प्रतिवर्ष पांच अप्रैल को लोटा कीता में श्रद्वांजलि सभा का आयोजन कर रघुनाथ महतो एवं उनके साथी शहीदों को नमन एवं उनके परिजनों को सम्मानित किया जाता रहा है।