जलवायु परिवर्तन की चुनौती और भारत की पहल

♦पांडुरंग हेगड़े♦

संयुक्त राष्ट्र 22 अप्रैल को एक विशेष दिवस के रूप में पृथ्वी मातृ दिवस मनाता है। 1970 में 10000 लोगों के साथ प्रारंभ किये गये इस दिवस को आज 192 देशों के एक अरब लोग मनाते हैं। इसका बुनियादी उद्देश्य पृथ्वी की रक्षा और भविष्य में पीढ़ियों के साथ अपने संसाधनों को साझा करने के लिए मनुष्यों को उनके दायित्व के बारे में जागरूक बनाना है। 2017 के विषय पर्यावरण और जलवायु साक्षरता का उद्देश्य पृथ्वी माँ की रक्षा के लिए आम लोगों में इस मुद्दे के प्रति जानकारी को और सशक्त बनाना और उन्हें प्रेरित करना है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के मामले में भारत सबसे कमजोर

आईपीसीसी (जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल) के मुताबिक भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के मामले में सबसे कमजोर है जो स्वास्थ्य, आर्थिक विकास और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन की इस चुनौती के समाधान के लिए भारत की ओर से कई कदम उठाये गये हैं।

वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य

 वर्ष2030 तक 33 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई पहलों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा के लिए 3500 मिलियन या 56 मिलियन अमरीकी डॉलर से राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के गठन से नीतियों की पहल की जायेगी।
इसका मुख्य केन्द्र बिन्दु वायु, स्वास्थ्य, जल और सतत कृषि की पुनः परिकल्पना के अतिरिक्त अभियान के साथ जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्यवाही (एनएपीसीसी) के अतंर्गत राष्ट्रीय अभियानों को फिर से प्रारंभ करना है।

 हरित ऊर्जा निर्माण की रणनीति

वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 35 गीगावॉट (गीगा वाट) से 175 गीगावॉट तक बढ़ाने के द्वारा स्वच्छ और हरित ऊर्जा का निर्माण शमन रणनीतियों में शामिल है। सौर ऊर्जा में पांच गुना वृद्धि के साथ इसे 1000 गीगावॉट तक बढ़ाना के लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय सौर मिशन के अतिरिक्त देश भर में बिजली उत्पादन और वितरण की दक्षता बढ़ाने के लिए स्मार्ट पावर ग्रिड को भी विकसित करना है। 10 प्रतिशत ऊर्जा खपत को बचाने के लिए ऊर्जा संरक्षण की दिशा में एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया गया है। हालांकि ये जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के समाधान की दिशा में सूक्ष्म स्तर की नीतियां हैं, लेकिन भारत सरकार ने ऐसी सूक्ष्म परियोजनाओं की शुरुआत की है, जो न सिर्फ ऊर्जा बचाने के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि सबसे गरीब समूहों के प्रत्यक्ष लाभ में भी योगदान कर रही हैं।

22.66 करोड़ एलईडी बल्ब का वितरण

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत, उजाला योजना का शुभारंभ किया गया है जिसके अंर्तगत 22.66 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किए गए हैं इससे न सिर्फ 11776 करोड़ रुपये की बचत होगी बल्कि यह प्रतिवर्ष कार्बन उत्सर्जन में भी 24 मीट्रिक टन की कमी लाएगी। इसी प्रकार से, बीपीएल कार्ड रखने वाली महिलाओं को पेट्रोलियम मुक्त एलपीजी कनेक्शन दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना पहले से ही 2 करोड़ घरों तक पहुंच चुकी है और इसे 2019 तक 8 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ 5 करोड़ घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य है। इसके उपयोग से ग्रामीण महिलाओं पर सीधे प्रभाव पड़ता है, इससे स्वच्छ ऊर्जा स्रोत तक न सिर्फ आसान पहुँच प्रदान करता है बल्कि उनके स्वास्थ्य में सुधार होता है और इसके साथ-साथ वन संसाधनों पर दबाव कम होने के अलावा कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है।

अपशिष्ट से ऊर्जा पैदा करने की पहल

स्वच्छ भारत मिशन की एक और रणनीति शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट से ऊर्जा पैदा करने की पहल भी है। इसी तरह देश भर में 816 सीवेज उपचार संयंत्रों में पुर्नचक्रण के माध्यम से अपशिष्ट जल का पुनरू उपयोग करके प्रतिदिन 23,277 मिलियन लीटर पानी को स्वच्छ बनाना एक और पहल है। बंजर भूमि का पुनरुद्धार करके वन की गुणवत्ता को बढ़ाने तथा 5 मिलियन हेक्टेयर भूमि को वन क्षेत्र में बदलने के वार्षिक लक्ष्य के साथ हरित भारत मिशन एक और पहल है जिससे प्रतिवर्ष 100 मिलियन टन कार्बन को कम किया जाएगा। यह पर्यावरण और जलवायु साक्षरता के माध्यम से ही संभव है, जिसके परिणामस्वरूप जीवन शैली में परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर हम पृथ्वी माँ को बचा सकते हैं।

♦लेखक कर्नाटक के एक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार है।

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