♦ 11 लाख की राशि, अंग वस्त्र, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया
♦ रणेंद्र के नवीन प्रकाश्य उपन्यास ‘गूंगी रुलाई’ का कोरस का लोकार्पण
♦डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ♦
रांची: इफको की ओर से श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में दिया जाने वाला श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको सम्मान-2020 इस बार झारखंड के चर्चित लेखक-कथाकार रणेंद्र कुमार को प्रदान किया गया. रांची विश्वविद्यालय के मोरहाबादी स्थित आर्यभट्ट सभागार में आयोजित सम्मान समारोह में वरिष्ठ आलोचक डॉ रविभूषण, डॉ अशोक प्रियदर्शी, डॉ गिरिधारी राम गौंझू, महादेव टोप्पो, दयामनी बारला, डॉ अनुज लुगून, कालेश्वर गोप, डॉ उर्वशी, अनिता वर्मा, बिजू टोप्पो, डॉ मिथिलेश, एम जेड खान, भारती, मनमोहन पाठक समेत कई वरिष्ठ साहित्यकार व कलाकार मौजूद थे. अतिथियों का स्वागत इफको झारखंड के राज्य विपणन प्रबंधक आर के सिंह ने जबकि कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध प्रोड्यूसर मो इरफान और इफको साहित्य सम्मान 2020 के संयोजक नलिन विकास ने संयुक्त रूप से किया. मौके पर मौजूद सभी अतिथियों को पौधा, प्रशस्ति पत्र और शाल देकर सम्मानित किया गया.
इस वजह से रणेन्द्र किये गये सम्मानित
आर्यभट सभागार में आयोजित समारोह में साहित्यकार रणेन्द्र को प्रशस्ति पत्र के साथ 11 लाख रुपए के चेक से नवाजा गया. गौरतलब हो कि झारखंड के ये पहले साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला है. इतनी बड़ी राशि हिंदी साहित्य जगत में किसी भी सम्मान-पुरस्कार में नहीं दी जाती है. छह सदस्यीय निर्णायक मंडल ने उनका चयन उनके संपूर्ण साहित्यिक अवदान और वैचारिक समर्पण के लिए किया है. वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षता में गठित निर्णायक मंडल ने नरेंद्र का चयन खेती किसानी आदिवासी जीवन और ग्रामीण यथार्थ पर केंद्रित उनके व्यापक साहित्यिक अवदान को ध्यान में रखकर किया गया है. निर्णायक मंडल के अन्य सदस्य चंद्रकांता, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रोफेसर रवि भूषण, विष्णु नागर एवं डॉ दिनेश कुमार शुक्ल शामिल थे. बता दें कि प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी ऐसे रचनाकार को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को मुखरित किया गया हो. मूर्धन्य कथा शिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किए गए इस सम्मान के तहत सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र तथा 11 लाख रुपए की राशि प्रदान की जाती है.
रणेन्द्र ने आदिवासियों की समस्याओं को केन्द्र में रखा: डाॅ एस एन मुंडा
समारोह के मुख्य अतिथि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एस एन मुंडा ने कहा कि रणेन्द्र जी अपने कार्यावधि के दौरान कई आदिवासी बहुल इलाकों में पदस्थापित रहें. वे सरलतम् समाज, आदिवासी समाज से जुड़े लोगों के बीच रहें. उनकी समस्याओं को साहित्य के माध्यम से समाज के सामने लाने का प्रयास किया. वाकई इनका यह काम सराहनीय है. रणेन्द्र जी आगे भी अपनी लेखनी के माध्यम से परिवर्तन लायेंगे लाते रहेंगे और देश-समाज सशक्त होता रहेगा।
रेणु की परंपरा के लेखक हैं रणेन्द्र: नित्यानंद तिवारी
सम्मान समिति के अध्यक्ष नित्यानंद तिवारी ने रणेन्द्र को रेणु की परंपरा का लेखक बताते हुए ग्लोबल गांव के देवता को गोदान, मैला आंचल की परंपरा का उपन्यास माना. उन्होंने कहा कि यह उपन्यास मैला आंचल के बाद ग्रामीण और किसानी जीवन का सबसे प्रामाणिक चित्रण करता है. भारत की आधारभूत संस्था के रूप में कार्य करने के लिए उन्होंने इफको की सराहना की.
रणेन्द्र की लेखनी उम्दा है: डाॅ अशोक प्रियदर्शी
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक प्रियदर्शी ने कहा,रणेन्द्र की लेखनी बहुत ही उम्दा है. झारखंड के आदिवासी समाज की जीवन्त प्रस्तुति से वे अपनी एक खास जगह बनायी है. हमें खुशी है कि हमारे शहर के, हमारे घर के साहित्यकार को इतना बड़ा सम्मान मिल रहा है.
रांची विवि के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ प्रेम कुमार मणि ने कहा कि रणेन्द्र ने अपने साहित्यकार क्रम, लेखनी के माध्यम से इस सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों की ओर इशारा किया है. आने वाले विपदा को इंगित किया है.
उपलब्धियों से भरा है रणेन्द्र का साहित्यिक सफर
मालूम हो कि रणेंद्र को 2006 में कथादेश की कहानी प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार, उपन्यास ग्लोबल गाँव के देवता के लिए 2010 में जेसी जोशी स्मृति जनप्रिय लेखक सम्मान, 2013 का बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, 2019 में प्रथम विमलादेवी स्मृति सम्मान और 2019 का वनमाली कथा सम्मान मिल चुका है.
आदिवासी जीवन को अपनी लेखनी का विषय बनाने वाले सम्मानित साहित्यकार रणेंद्र ने कहा कि आदिवासी मित्रों के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने अपने अन्तर्मन में आने-जाने की अनुमति दी. साथ ही
अपनी बातों को समझने दिया. उन्होंने अपनी साहित्यिक रचना यात्रा को साझा करते हुए बताया कि वे पहली कविता जब लिखी, तब वो कक्षा नौवीं में पढ़ते थे. इंटर में पहुंचे तो उनकी कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी थीथी. साहित्य की ओर रुचि के सवाल पर उन्होंने बताया कि नालंदा के कस्बा सोसराय के किसान कॉलेज में उनके पिता डॉ शत्रुघ्न प्रसाद हिंदी के विभागाध्यक्ष थे. उनके घर पर साहित्य सम्मेलन संस्था की पाक्षिक गोष्ठी हुआ करती थी. वहीं से उन्हें प्रेरणा मिली. गोष्ठी में ही पहली कविता लिखकर सुनाई. बड़ों की हौसला अफजाई ने बल दिया और यह सिलसिला चल पड़ा. सोसराय के अलावा घर की लाइब्रेरी की लगभग समूची किताबें पढ़ डालीं. कॉलेज पहुंचते ही पिता से वैचारिक मतभेद होने लगे, पर उन्होंने कभी रोका-टोका नहीं.
सम्मान समारोह के पश्चात् साहित्यकार रणेंद्र के नवीन प्रकाश्य उपन्यास गूंगी रुलाई का कोरस का लोकार्पण किया गया. बता दें कि यह उपन्यास शास्त्रीय संगीत घराने में मुस्लिम समाज के योगदान और मॉब लीचिंग के ईद-गिर्द बुना गया है. सम्मान देने वाली संस्था के मुताबिक रणेन्द्र ने आदिवासी जीवन को उसकी संपूणर्ता में चित्रित किया है. आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं के साथ उनकी विसंगतियों को भी वो सामने लाते हैं.
नीलोत्पल मृणाल व चंदन तिवारी का गायन
मौके पर नीलोत्पल मृणाल, चन्दन तिवारी और साथियों के गायन ने सर्द मौसम में गरमाहट पैदा कर दी. वहीं श्रीलाल शुक्ल की कहानी सुखांत की रंग प्रस्तुति भी हुई.
इफको के एमडी ने दी शुभकामनाएं
इफको के प्रबंध निदेशक डॉ उदय शंकर अवस्थी ने अपने शुभकामना संदेश में सम्मानित साहित्यकार रणेन्द्र को बधाइयां दी.