वेबिनार में वक्ताओं ने कहा- नयी शिक्षा नीति से मातृभाषाओं का हो सकेगा संरक्षण और विकास

♦Laharnews.com Correspondent♦

रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के तत्‍वावधान में मंगलवार को राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का विषय था- ‘नयी शिक्षा नीति और मातृ भाषाओं की प्रासंगिकता: वर्तमान परिपेक्ष्‍य में।’ इस वेबिनार में वक्ताओ द्वारा नयी शिक्षा-नीति पर अपने-अपने विचार साझे किये गये।
राष्ट्रीय वेबिनार का विषय प्रवेश रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, संचालन प्राध्यापक डॉ उमेश नंद तिवारी और धन्यवाद ज्ञापन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने किया।
शानदार है नयी शिक्षा नीति, मातृभाषा को महत्व: डाॅ हरि उरांव
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा को महत्व देने के लिए सरकार की मंशा की भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी। तथा इसे हमारी संस्कृति की पुनस्थार्पना की कोशिश बताया। उन्होंने कहा कि मातृभाषा के बिना समाज और देश का विकास संभव नहीं है। मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम से हम समाज व देश को तेजी से विकसित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में भाषा की स्थिति अच्छी नहीं है। झारखंड की कई ऐसी भाषाएं हैं जिन पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। यह शिक्षा नीति उन भाषाओं को संरक्षित व सवंर्द्धित करने की दिशा में एक नई उम्मीद जगाती है। भाषाओं को पनपने और मुख्यधारा में शामिल होने का एक अवसर प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति से स्कूलों में ड्रॉपआउट घटेगा। डॉ उराँव ने नई शिक्षा नीति को एक बदलाव की पहल बताया। उन्होंने नयी शिक्षा नीति के जरिया मातृभाषा पर भी जोर दिया। कहा, नई शिक्षा नीति से हमारे देश के युवाओं को रोजगार और अवसर प्राप्त होगा। यह नीति एक दूरदर्शी सोच के तहत हमारे देश के जन-जन को जोड़ने का काम करेगी।
नयी शिक्षा नीति से मातृभाषाओं की दशा-दिशा तय होगी: डाॅ विक्रम  चौधरी

राष्ट्रीय वेबिनार में अपने विचार व्यक्त करते हुए गुजरात के सूरत से गुजराती भाषा के ज्ञाता, विद्वान डॉ विक्रम चौधरी ने कहा, वर्तमान शिक्षा नीति से हमारी मातृभाषाओं की दशा व दिशा तय होगी। हमारी सांस्कृतिक, भाषाई और भौगोलिक सौंदर्य को अच्छी तरह से समझने और जानने का मौका मिलेगा। मातृ भाषाओं में बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने से बच्चों की कल्पना शक्ति मजबूत होगी। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा के स्तर में सुधार होगा, साथ ही बच्चों का विद्यालय में ड्रॉप आउट घटेगा।

नयी शिक्षा नीति विकास में काफी अहम: डाॅ अशोक बाखला
दिल्ली के वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक और भाषाविद् डॉ अशोक बाखला ने कहा, सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषाओं में शिक्षा देने को अनिवार्य करना काफी सराहनीय कदम है। यह सामाजिक एकीकरण और विकास में काफी अहम भूमिका निभायेगा। खास तौर से वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता काफी बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा, हमारी कई भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसे समय में केंद्र सरकार की शिक्षा नीति एक वरदान के रूप में मील का पत्थर साबित होगी। हम सबको मिलकर अपनी भाषा की उपयोगिता को सशक्त बनाना होगा। उन्होंने कहा, झारखंड की जो क्षेत्रीय भाषाएं हैं वह झारखंड की आदिवासी भाषाओं के मध्य एक लिंक के रूप में कार्य करता है। जनजातीय भाषाएं और क्षेत्रीय भाषाओं कई शब्द एक-दूसरे में समाहित हैं। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान की धारा 343, 346 और 347 में भाषा की उपयोगिता के बारे में लिखा है। हम कैसे अधिक से अधिक अपनी भाषाओं अपनी भाषाओं को प्रचारित प्रसारित कर सकते हैं, किस तरह से हम अपनी भाषाओं को संरक्षित कर सकते हैं। इस पर हमें चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। हम अपनी भाषाओं में साहित्य का सृजन कर बच्चों के लिए चित्रावली के माध्यम से बातों को प्रस्तुत करना होगा। साथ ही डिजिटल रूप में भी अपने विरासत को अपने लोगों तक पहुँचाना होगा। मुख्य धारा तक अपनी पहचान बनानी होगी। आने वाले दिनों में मातृभाषा की उपयोगिता को और अधिक बढ़ाने की जरूरत होगी।

नयी शिक्षा नीति कौशल विकास में भी मददगार: प्रो ठाकुर प्रसाद मुर्मू
सिदो-कान्हू बिरसा यूनिवर्सिटी (पुरुलिया, पश्चिम बंगाल) के प्रो ठाकुर प्रसाद मुर्मू ने कहा, नई शिक्षा नीति में भाषा की शक्ति को पहचाना गया है। भाषा के महत्व को तरजीह दी गई है। एक मंच प्रदान किया गया है। छात्रों को स्वतंत्र रूप से अपनी अपनी भाषाओं में शिक्षा ग्रहण करने की छूट दी गई है। साथ ही उनका कौशल विकास कैसे हो इस पर भी जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कला व संस्कृति को शिक्षा के माध्यम से जोड़ा गया है, जो हमारे बीच नए अवसर प्रदान करते हैं। इस शिक्षा नीति से छोटी-छोटी भाषाओं के संरक्षण में काफी मदद मिलेगा। जो भाषाएं लुप्त हो जाती थी अथवा कहें कि जो भाषाओं पर लुप्त हो जाने का भय रहता था उनको इस शिक्षा नीति से संरक्षण मिलेगा। नयी शिक्षा नीति के जरिये शिक्षा के साथ-साथ स्वरोजगार देने का भी कार्य हो सकेगा।
मातृभाषा का स्थान सर्वोच्च: डाॅ उमेश नंद तिवारी
रांची विवि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्राध्यापक डॉ उमेश नंद तिवारी ने संचालन करते हुए कहा, माँय भाषा से स्वाभिमान जागृत होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। मातृभाषा का स्थान सर्वोच्च होता है। डॉ तिवारी ने कहा कि यह युग तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। भाषा विज्ञान के नये सिद्वान्त भी तद्नुसार विकसित हो रहें है। प्रौद्योगिकी से एक सार्वभौमिक भाषा के जन्म लेने की संभावना भी बनती जा रही है।

नयी शिक्षा नीति भावी पीढ़ी के लिए वरदान: दीप्ति एक्का
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा) की वरीय शोधार्थी दीप्ति एक्का ने कहा, वर्तमान शिक्षा नीति हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए वरदाना साबित होगा। जिस तरह से हम अपनी भाषा और संस्कृति से विमुख हो रहे थे, वैसे समय में शिक्षा नीति का आना हम सबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। वर्तमान समय में हमारी भाषा संस्कृति काफी पीछे छूटती जा रही है। हमारी युवा पीढ़ी विमुख होते जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति उन पर हावी होती जा रही है।ऐसे समय में नई शिक्षा नीति हमारा मार्गदर्शन करगी।
रोजगार उन्मुखी है नयी शिक्षा नीति: डाॅ बीरेन्द्र कुमार महतो
वेबिनार का विषय प्रवेश कराते हुये प्राध्यापक डाक्टर बीरेन्द्र कुमार महतो ने नयी शिक्षा-नीति में मातृभाषा की महत्ता को रेखांकित किया तथा कहा, हमारे जीवनमूल्य एवं छूटती सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना के प्रयास की नयी शिक्षा नीति आत्मा है। डॉ महतो ने कहा, नई शिक्षा नीति रोजगार उन्मुखी है। कौशल विकास से लेकर इंडस्ट्रियल नॉलेज तक को नई शिक्षा नीति में शामिल किया गया है। नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य बच्चों को उनकी मातृभाषा और संस्कृति से जोड़े रखते हुए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चे घर में बोले जाने वाली मातृभाषा या स्थानीय भाषा में जल्दी सीखते हैं। इससे बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में सहायता मिलेगी।
इन्होंने भी रखे विचार
मौके पर इस वेबीनार में शोधार्थी योगेश कुमार महतो और विजय कुमार साहू ने भी अपने अपने विचार व्यक्त व्यक्त विचार व्यक्त किए। इस राष्ट्रीय वेबिनार में गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल के भाषा विद्वान, साहित्यकारों के अलावा झारखंड के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी, छात्र, प्राध्यापक, भाषा विद व साहित्यकार शामिल हुए।

 

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