टीआरएल विभाग का राष्ट्रीय वेबिनार: वक्ताओं ने कहा- मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है

♦Laharnews.com Correspondent♦

रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के तत्वावधान में रविवार को झारखंड की मातृभाषाएँः वर्तमान और भविष्य की संभावनाएँ विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया वेबीनार का विषय था
रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ रमेश कुमार पांडेय ने बतौर मुख्य अतिथि वेबिनार को संबोधित किया। वेबिनार की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ हरि उरांव, विषय प्रवेश प्राध्यापक डॉ उमेश नंद तिवारी, संचालन दिनेश कुमार दिनमणि, धन्यवाद ज्ञापन किशोर सुरीन तथा कार्यक्रम के संयोजक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो थे।
मातृभाषा का संरक्षण और संवर्द्धन काफी जरूरी: डाॅ हरि उरांव
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुये जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा, संपूर्ण मानव समुदाय के चहंुमुखी विकास के लिये मातृभाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन काफी जरूरी है। नयी शिक्षा नीति में हमारी मातृ भाषाओं के विकास व संरक्षण के लिए कदम उठाये गये हैं। इससे मातृभाषाओं को एक सशक्त मंच मिलेगा। आज के दिन हमें अपनी मातृभाषाओं के संरक्षण व संवर्धन का संकल्प लेना चाहिये,चूंकि मातृभाषा का हमारे जीवन में काफी महत्व है।
मातृभाषा संस्कृति की वाहक: डाॅ उषा रानी मिंज
गवर्नमेंट साइंस कालेज (रायपुर, छत्तीसगढ़, हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष) व कुड़ुख लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ उषा रानी मिंज ने कहा, मातृभाषा हमारी संस्कृति की वाहक है। इसमें पूरे समुदाय और देश को संगठित करने की अद्भुत शक्ति होती है। उन्होंने कहा, हमें समय रहते अपनी मातृभाषा को अधिक से अधिक प्रचारित व प्रसारित करने की आवश्यकता होगी। अपनी मातृभाषा को संरक्षित करना होगा।

भाषा के बगैर मनुष्य का अस्तित्व नहीं: डाॅ नारायण साहु
भुवनेश्वर स्थित उत्कल यूनिवर्सिटी उडिया विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ नारायण साहु ने बांग्लादेश में हुई भाषायी क्रांति व शहीद क्रांतिवीरों की भूमिका को रेखांकित करते हुये कहा, मातृभाषा और मनुष्य का रिश्ता गहरा व आदिम रहा है। भाषा के बगैर मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं। उन्होंने बताया कि मातृभाषा के साथ व्यक्ति का भावनात्मक जुड़ाव होता है।
मातृभाषा काफी अहम: डाॅ सविता प्रधान
विश्व भारती, शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल के उडिया विभाग के प्रोफेसर डॉ सविता प्रधान ने कहा, मातृभाषा के माध्यम से एक बच्चा सबसे पहले अपनी माँ और फिर पूरे राष्ट्र से जुड़ता है। जिस प्रकार मनुष्य की मृत्यु होती है उसी प्रकार भाषा की भी मृत्यु हो जाती है। उन्होंने कहा कि अधिकांश भाषाएं घर परिवार तक ही बोली जाती है. व्यवसाय के लिए दूसरी भाषा सीखनी पड़ती है, इस कारण भी लोग अपनी मातृभाषा से दूर हो जाते हैं।

मातृभाषा मानव की संस्कारों की कल्पना: डॉ उमेश नन्द तिवारी
विषय प्रवेश कराते हुए टीआरएल विभाग के प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि मातृभाषा मानव की संस्कारों की कल्पना है। यह हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है। मातृभाषा मां के दूध के समान है।
तकनीकी कारणों से रांची विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉ रमेश कुमार पाण्डेय और वी. एस. के. विश्वविद्यालय, वेलारी, कर्नाटक के अंग्रेजी विभाग के भाषाविद प्रोफेसर डॉ वी शांता नायक नहीं जुड़ पाए। उन्होंने वेबिनार के सफल आयोजन पर बधाइयाँ दी।

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