♦जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के लिए आज का दिन अत्यंत ऐतिहासिक कहा जा सकता है। रांची विश्वविद्यायल के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में नौ भाषाओं के कवियों का का महाजुटान हुआ। यहां की भाषाओं में सुनाई गयी कविता से झारखंड की संस्कृति चहक उठी। लेकिन इसके साथ झारखंड की संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन पर भी जोर दिया गया।
♦Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग और झारखंड सरकार के सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन का मंच संचालन डॉ उमेश नन्द तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने किया।
समृद्ध है झारखंड की कला-संस्कृति: डाॅ रमेश पांडेय
रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ रमेश कुमार पांडेय ने मुख्य अतिथि के तौर पर कहा- झारखंड की कला-संस्कृति बहुत ही समृद्ध है। यहां की संस्कृति को अगर जीवित रखना है तो अखड़ा को जीवित रखना होगा। हम सबों को अखड़ा संस्कृति को बचाना होगा, तभी हमारी संस्कृति बच पाएगी। उन्होंने कहा कि कवि शब्दों के जादूगर होते हैं। वे कला, संस्कृति व समाज की बातों को अपने शब्दों के माध्यम से पूरी दुनिया के सामने रखने का काम करते हैं। शब्दों को लंबी उड़ान देते हैं। उन्होंने कहा कि शब्द अनमोल है, शब्दों का अपना एक संसार है जो कभी मरता नहीं है।
समाज की दिशा तय करते हैं कवि: डाॅ करमा उरांव
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए टीआरएल विभाग एवं मानवशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ करमा उरांव ने कहा- जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के लिए आज का दिन गौरव भरा है। एक साथ और एक ही जगह पर नौ भाषाओं के कवियों का महाजुटान हो रहा है, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। उन्होंने कहा कि कवि, गायक समाज की दिशा व दशा को तय करते हैं। यहां की आबोहवा और संस्कृति को पहचानने की आवश्यकता है, जिससे हम सबों का सृजन हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य के विकास की परिकल्पना टीआरएल विभाग में दिखाई देती है। यह विभाग पूरी दुनिया में एक अलग स्थान रखता है। टीआरएल विभाग में पूरी दुनिया की झलक दिखाई पड़ती है।
विभाग की पहचान के लिए शोध जरुरी: डाॅ कामिनी कुमार
रांची विश्वविद्यालय की प्रभारी कुलपति डॉ कामिनी कुमार ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर कहा- किसी भी विभाग की पहचान के लिए रिसर्च को आगे बढ़ाने की आवश्यकता होती है। रिसर्च वर्क ही उसकी पहचान होती है। जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग इस दिशा में इस दिशा में विभाग कार्य कर रहा है और आगे भी बेहतर करते करेगा। भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिए शोध कार्यों को महत्व दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि भाषा के लिए लिपियों की आवश्यकता होती है, और जल्द ही सभी भाषाओं की लिपियों में पढ़ाई का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आगामी वर्ष में नैक का मूल्यांकन होना है और इसी के तहत जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाना है। साथ ही जनजातीय क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षकों की जो कमी है उस कमी को जल्द दूर किया जाएगा। उन्होंने जल्द ही जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के लिए अलग संकाय की स्थापना करने की बात कही। इसके लिए जल्द ही एक प्रस्ताव सिंडिकेट की बैठक में मंजूरी के लिए रखा जाएगा।
झारखंड में लोक संस्कृति की लंबी परंपरा: डाॅ हरि उरांव
कवि सम्मेलन में आए अतिथियों व कवि साहित्यकारों का स्वागत करते हुए जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा- झारखंड में लोक संस्कृति की एक लंबी परंपरा रही है। गीत व कविता के माध्यम से आज तक लिखा जाने वाला समाज वर्तमान में अपनी लेखनी के माध्यम से आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक पहलुओं पर लेखन कार्य कर रहे हैं, यह हमारे लिए एक शुभ संकेत है।
झारखंड में साहित्यकारों की कमी नहीं,पुस्तक प्रकाशन की हो व्यवस्था: डॉ कुमार विजेंद्र
विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक, हिंदी के जाने-माने लेखक, कवि डॉ कुमार विजेंद्र ने कहा- कवि अपनी लेखनी के माध्यम से संवेदना और चेतना को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। गमों को खुशी में तब्दील करने के लिए कविता की रचना जरुरी है। उन्होंने कहा कि यहां लेखकों और साहित्यकारों की कमी नहीं है। यहां के कवियों की पुस्तकों को प्रकाशित करने की दिशा में पहल होनी चाहिए ताकि मुख्यधारा का समाज भी इनसे रू-ब-रू हो सके।
अखड़ा संस्कृति बचानी होगी: पदमश्री मुकुंद नायक
पदमश्री मुकुंद नायक ने कहा- झारखंड का निर्माण एक तपस्या और बलिदान की वजह से हुआ है। अपनी पहचान को बचाने के लिए हमें अपनी अखड़ा संस्कृति को बचाना होगा,अन्यथा हमारी संस्कृति, हमारा अस्तित्व समूल नष्ट हो जाएगा। यदि अखरा संस्कृति नहीं बची तो आदिवासी व मूलवासियों की पहचान मिट जाएगी।
भाषा-संस्कृति के लिए आगे आना होगा: पदमश्री मधु मंसूरी हंसमुख
पदमश्री मधु मंसूरी हंसमुख ने झारखंड आंदोलन में यहां के कवियों, कलाकारों के द्वारा दिए योगदान को अहम बताया। कहा- अलग राज्य वाली आंतरिक खुशी हमें नहीं मिल सकी है। हम अंदर ही अंदर कुंठा के शिकार हो रहे हैं। हम सबों को फिर से एकजुट होकर भाषा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए आगे आना होगा। उन्होंने चल रे चल झारखंडी निजहर पानी पीते चल गीत गाकर सबों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कवियों का कविता पाठ
कवि सम्मेलन में नागपुरी, कुड़ुख, हो, मुंडारी और कुरमाली भाषा के पाँच-पाँच कवियों के द्वारा कविता पाठ किया गया। कविता पाठ करने वाले कवियों में नागपुरी भाषा से पदमश्री मधु मंसूरी हंसमुख, गोविंद शरण लोहरा, प्रमोद कुमार राय, राम उचित सिंह, क्षितिज कुमार राय, कुँड़ुख भाषा से डॉ हरि उरांव, चैठी उरांव, प्रेमचंद उरांव, महावीर उरांव, सीता कुमारी, हो भाषा से डॉ जानूम सिंह सोय, गुरुचरण पूर्ति, दमयंती सिंकू, लाल सिंह बोयपाई, डॉ सरस्वती गागराई, कुरमाली भाषा से डॉ मानसिंह महतो, डॉ परमेश्वरी प्रसाद महतो, रतन महतो, डॉ वृंदावन महतो, देवेंद्र नाथ महतो महतो और मुंडारी भाषा से हेसल सारू, डॉ वीरेंद्र कुमार सोय, डॉ सिकरा दास दास तिर्की, बसंती मुंडा एवं किशोर सूरीन ने कविता पाठ प्रस्तुत किया।
विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा शोधार्थी बुद्धेश्वर बड़ाईक की अगुवाई में हाथ जोडे करत ही जोहाइरे, आलयँ मेहिमाइने स्वागत गान प्रस्तुत किया गया। साथ ही सभी अतिथियों को प्रतीक चिह्न व शाल से सम्मानित किया गया।
कवि सम्मेलन का द्वितीय सत्र
कवि सम्मेलन के द्वितीय सत्र का मंच संचालन डॉ निरंजन कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन धीरज उराँव ने किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए राम लखन सिंह सिंह यादव कॉलेज के प्राध्यापक डॉ खालिक अहमद ने कहा कि जहां ना जाए रवि वहां जाए कवि। हमारी संस्कृति, भाषा व साहित्य को संरक्षित करने की आवश्यकता है, तभी हमारा साहित्य समृद्ध होगा।
इनकी रही मौजूदगी
कवि सम्मेलन में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के डॉ राकेश किरण, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ किरण कुल्लू, शकुन्तला बेसरा, प्रकाश उराँव, डॉ उपेन्द्र कुमार, रमाकांत महतो, करम सिंह मुंडा, अनुराधा मुंडू, अबनेजर टेटे, संतोष कुमार भगत, प्रवीण सिंह, संदीप कुमार महतो, मानिक कुमार, पप्पू बांडों, प्रभा मुंडा, बसंती देवी के अलावा विभाग के शोधार्थी, छात्र छात्राएं और विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार व साहित्य प्रेमी मौजूद थे।