रांची विवि के टीआरएल विभाग में कवि सम्मेलन का समापन, कविता अंतरआत्मा की पुकार होती है

♦Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग और झारखंड सरकार के सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में आयोजित दो दिवसीय कवि सम्मेलन का शनिवार को समापन हो गया। कवि सम्मेलन में अतिथियों का स्वागत प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी, मंच संचालन डॉ निरंजन कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन नरेन्द्र कुमार दास ने किया।
झारखंड की भाषाओं के साहित्यकारों को उभरने का मिलेगा मौका: डाॅ हरि उरांव
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए टीआरएल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में एक साथ काव्य पाठ का आयोजन हमें आपस में और सशक्त बनाता है। इस सम्मेलन के माध्यम से झारखंड की भाषाओं के नये-नये साहित्यकारों को उभरने का मौका मिलेगा। एक नया मंच मिला है जिससे टीआरएल विभाग के छात्र-छात्राओं का रूझान अपनी माँय भाषा के प्रति बढ़ेगा।
भाषाओं के लिए अनवरत कार्य करने की जरुरत: डाॅ प्रकाश चन्द्र उरांव
डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ प्रकाश चन्द्र उराँव ने मुख्य अतिथि के तौर पर कहा- जिस तरह सौरमंडल में नौ ग्रहों का महत्व है, रत्नों में नौ रत्नों का महत्व है ठीक उसी प्रकार नौ भाषाओं का विभाग जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग का महत्व झारखंड में है। उन्होंने झारखंड की माँय भाषा व संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने की बात करते हुए कहा कि मोहमाया और मायाजाल से बाहर निकल कर भाषाओं को केन्द्रित करते हुए अनवरत कार्य करने की जरूरत है।

अंतरआत्मा की पुकार होती है कविता: सोमा सिंह मुंडा
डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के पूर्व उप-निदेशक सोमा सिंह मुण्डा ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर कहा- कविता कवि की अंतरात्मा की पुकार है। अपने सहज भाव से जो अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं वही सच्चे कवि हैं। उन्होंने प्राचीन काल के गीतों व कविताओं की चर्चा करते हुए कहा, प्राचीन काल में कविताओं में भक्ति का भाव ज्यादा होता था। यह सरसता का भाव आज भी देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि नवरस में श्रृंगार रस कवि को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। कविता रचना के माध्यम से हम संसार में अमर हो जाते हैं। हमें अपनी रचनाओं में दार्शनिक पक्ष को ज्यादा तरजीह देनी चाहिए। कविता साहित्य सृजन का बहुत ही सशक्त माध्यम है।
कवियों को उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ता है: डाॅ टीएन साहु
रांची विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ त्रिवेणी नाथ साहु ने कहा कि कविता कर्म करने वाले व्यक्ति की दशा किसी से छिपी हुई नहीं है। उन्हें कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि नौ भाषाओं में कविता पाठ आयोजन से विभाग के शोधकर्ताओं और छात्रों को नया रास्ता मिलेगा। उन्हें निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सामूहिकता से ही सभी कार्य होते हैं इसलिये सामूहिक रूप से ही हमें अपने कार्य को अंजाम तक पहुँचाने की जरूरत है। उन्होंने झारखंड के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं को झारखंड की प्रशासनिक परीक्षा में प्रमुखता के साथ विशेष रूप से जोड़ने की बात कही, ताकि यहाँ के नवयुवकों को प्रशासनिक क्षेत्र में जाने का मौका मिल सके। डॉ साहू ने गांव कविता का पाठ किया – एक पेयारा सा गाँव, जहाँ पीपर कर छाँव, छाँव में बसल हाम, एक तो परदेसी हाम, परदेसी मनक बस्ती, ना कोई मेला ना कोई मस्ती…
एक पेयारा सा गाँव, जहाँ पीपर कर छाँव…

काव्य पाठ का होना एक स्वर्णिम क्षण : चिन्टू दोराई बुरू

डॉ राम दयाल मुण्डा शोध संस्थान के उप-निदेशक चिन्टू दोराई बुरू ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर कहा- किसी भी समाज की प्रगति व समृद्धि उसकी अपनी माँय भाषा पर ही निर्भर है। नौ भाषाओं में एकसाथ, एक जगह पर काव्य पाठ का होना एक स्वर्णिम क्षण है।

अंतरात्मा की आवाज होती है कविता: डॉ गिरिधारी राम गौंझू
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने कहा, कवि कभी मरता नहीं है। वह अपनी रचनाओं की वजह से समाज में अमर हो जाता है।
उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति में अपनी-अपनी प्रतिभा होती है। परिस्थितिवश कुछ ऐसा क्षण व्यक्ति के जीवन में आता है, तब वह अपने अंदर की भावनाओं को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि कविता मनुष्य के हृदय से निकलता है। इसे हर कोई नहीं रच सकता। व्यक्ति की अंतरात्मा की आवाज होती है कविता।

प्रत्येक वर्ष साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन :विजय पासवान

झारखंड सरकार के कला संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक विजय पासवान ने रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के बारे में कहा कि यह विभाग अपने आप में अदभुत विभाग है। कहा- अब प्रत्येक वर्ष इस विभाग में इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन कला संस्कृति विभाग की ओर से किया जायेगा।

दूसरे दिन का द्वितीय सत्र
कवि सम्मेलन के द्वितीय सत्र का मंच संचालन डॉ उमेश नन्द तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन करम सिंह मुंडा ने किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता टीआरएल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने किया।

इन्होंने किया काव्य पाठ
संताली भाषा से आदित्य कुमार मार्डी, जोबा मुर्मू, चन्द्र मोहन किस्कु, मोहन चन्द्र बास्के, भुजंग टुडू।
खोरठा भाषा से सुरेश कुमार विश्वकर्मा सुकुमार, महेन्द्र नाथ गोस्वामी, शांति भारत, शिव नन्दन पाण्डे गरीब, प्यारे हुसैन अंसारी।
खड़िया भाषा से चन्द्र किशोर केरकेट्टा, डॉ किरण कुल्लू, डॉ मीराकल टेटे, नीली सरोज किड़ो, नीता कुसुम बिलुंग।
पंचपरगनिया भाषा से डॉ करम चन्द अहीर, रमाकांत महतो, डॉ दीनबंधु महतो, नरेन्द्र कुमार दास, एंथोनी मुण्डा।

इनकी रही मौजूदगी
कवि सम्मेलन में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के डॉ वृंदावन महतो, डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ दमयन्ती सिंकू, डॉ सरस्वती गागराई, किशोर सुरिन, साहित्यकार महादेव टोप्पो, शकुन्तला मिश्रा, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ किरण कुल्लू, शकुन्तला बेसरा, प्रकाश उराँव, डॉ उपेन्द्र कुमार, रमाकांत महतो, करम सिंह मुंडा, अनुराधा मुंडू, अबनेजर टेटे, प्रवीण सिंह, संदीप कुमार महतो, मानिक कुमार, अनाम ओहदार, पप्पू बांडों, प्रभा मुंडा, बसंती देवी के अलावा विभाग के शोधार्थी, छात्र छात्राएं और विभिन्न भाषाओं के साहित्यकार व साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

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