सीपी तिकी झारखंड आंदोलन की आवाज थे। वह लोगों के बीच अपने कर्मों और विचारों की वजह से लोकप्रिय थे। अविभाजित बिहार के इस इलाके यानी मैजूदा झारखंड के लोगों को वह शोषण से मुक्त करना चाहते थे। वह मानते थे कि झारखंड अलग राज्य का निर्माण यहां के लोगों के लिए बहुत जरूरी है। इसके साथ ही लोगों के बीच काफी लोकप्रिय होने की वजह से वह सियासी निशाने पर भी आ गये थे। 9 अक्तूबर 1991 को अकेला देख अपराधियों ने उनकी हत्या कर दी। लेकिन उनके विचार आज भी जीवित हैं।
झारखंड का गुमला जिला वीरों की भूमि रही है। देश के लिए शहादत देने की बात हो या झारखंड आंदोलन के लिए, दोनों में यहां के युवा शहादत देने में पीछे नहीं रहे । इसी वीर माटी के सपूतों में ख्रिस्ट प्रकाश तिर्की (सीपी तिर्की ) का नाम प्रमुख है। सीपी तिर्की ने 9 अक्टूबर-1991 को अपने
प्राणों की आहुति देकर झारखंड आंदोलन की महिमा को कम नहीं होने दिया। अपने बौद्धिक क्षमता के बल पर झारखंड के एक-एक युवाओं को झारखंड पार्टी से जोड़ने की कोशिश की। झारखंड आंदोलन के सच्चे सिपाही सी पी तिर्की का जन्म 5 मई 1963 को हुआ था। मसीही परिवार में जन्मे सीपी तिर्की शिक्षित व संस्कारी थे। संत जेवियर कॉलेज, रांची में शिक्षा-दीक्षा ली। वह झारखंड के लोगों की देश दुनिया में अलग पहचान नहीं होने को लेकर चिंतित थे। आदिवासियों के शोषण व उत्पीड़न से काफी वह दुखी रहते थे। इस मुद्दे पर अपने साथियों के साथ चर्चा करते और अविभाजीत बिहार के इस इलाके (मौजूदा झारखंड राज्य) को शोषण मुक्त करने की इच्छा रखते थे। वृहत झारखंड अलग राज्य के प्रणेता मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा व एन ई हो रो से काफी प्रभावित थे। वह झारखंड आंदोलन को गतिमान बनाने रखने के लिए स्वयं को झोक दिया। सी पी तिर्की के साथ हजारों युवा गोलबंद हुए। उनके विचारों से लोग प्रभावित होने लगे।चुनौतियां उनके सामने पहाड़ की तरह थीं। लोगों के चेहरे पर हंसी नहीं थी। बेरोजगारी व पलायन को वह बहुत बड़ी समस्या मानते थे। उनका मानना था कि अलग राज्य से ही हमारे सपने पूरे होंगे।
उनके अदम्य साहस,दृढ़ इच्छशक्ति को देख लोग उन्हें अपने आगुआ मानने लगे। इस वहज से सीपी तिर्की को सियासी लोग अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी समझने लगे। इसी वजह से वह सीपी तिर्की उनके निशाने पर आ गये। 9 अक्टूबर-1991 को अकेला देख कुछ अपराधियों ने उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या के बाद झारखंड आंदोलन का एक अध्याय हमेशा के लिए खत्म हो गया, हालांकि उनके विचार आज भी जीवित हैं और झारखंड के युवाओं को राह दिखा रहे हैं।
♦ लेखक पुष्कर महतो,झारखंड आंदोलनकारी हैं। आलेख में दिये गये विचार उनके निजी हैं।