♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची: आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच ने कहा कि झारखंड सरकार यहां के लोगों के भावनाओं के अनुकुल खतियान के आधार पर स्थानीय नीति लागू करे और इसे नियोजन, व्यापार-उद्योग, ठेका पट्टा, खान- खनिज की लीज समेत सभी स्तरों पर अमल में लाया जाना चाहिए। इस सिलसिले में मंच की ओर से आयोजित प्रेसवार्ता में अध्यक्ष राजू महतो, उपाध्यक्ष सरजन हांसदा, महासचिव रंजीत उराँव, संयोजक विजय साहु एवं प्रवक्ता संबोध दांगी ने संयुक्त तौर पर कहा कि झारखण्ड के आदिवासी मूलवासी जनता एवं राज्य के सभी राजनीतिक दल स्थानीयता के पक्ष में सड़क से लेकर सदन तक अपनी बातों को रखें हैं। इसमें विलंब नहीं होना चाहिए। कहा- राज्य गठन से लेकर अब तक सर्वमान्य स्थानीय नीति का निर्धारण नहीं होना झारखण्ड के आदिवासियों एवं मूल निवासियों के अस्तित्व पर प्रहार करने जैसा कदम प्रतीत होता है। इस दौरान उन्होंने सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा 9 जनवरी 2002 (सी.ए.नं.-1998) को चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड बनाम गुरमित सिंह के मामले में न्यायमूर्ति वी. एन. खरे और न्यायमूर्ति वी. एन. अग्रवाल की खंडपीठ के निर्णय का भी हवाला दिया। मंच ने मांग की है कि झारखण्ड सरकार अविलम्ब झारखण्ड की नौ क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं (संथाली, नागपुरी, कुडुख, कुरमाली, मुएडारी, खोरठा, हो, पचपरगनिया, खड़िया) को लागू करें एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं समेत केजी से पीजी तक एवं बीएड कोर्स में शामिल करें।
राँची विश्वविद्यालय का नाम पदमश्री डॉ० राम दयाल मुंडा और सिमडेगा कॉलेज का नाम अमर शहीद तेलेंगा खड़िया करने की मांग की गयी।
इसके अलावा झारखण्ड आन्दोलनकारियों को सम्मान, नियोजन, पेंशन देने, विभिन्न आन्दोलनों में मारे गए लोगों को शहीद का दर्जा देते हुए आश्रितों को सरकारी नौकरी सहित पचास लाख रूपये मुआवजा का भुगतान करने की मांग की गयी। साथ ही कहा- आदिवासी मूलवासी जनभावना के अनुरूप कार्य करने वाले बिशप डा० निर्मल मिंज, डा० बी० पी० केशरी, डा० आर० पी० साहू, डा० सुशील केरकेट्टा एवं लाल काशी नाथ शाहदेव की प्रतिमा स्थापित किया जाएगा।