शिक्षक ‘राधिका बाबू’ का जीवन संघर्ष आज भी दिखाती है नयी राह

गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं और गुरु ही भगवान शंकर हैं। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। देश और समाज का का निर्माण गुरु करते है। वे देश का भविष्य और वर्त्तमान गढ़ते है। गुमनामी में रहकर भी समाज को दिशा और ऊर्जा देते हैं। लेकिन अंधकार और दूर के इलाके में अशिक्षित समाज के बीच शिक्षा की ज्योति जलाना भी तो आसान नहीं होता। हमारी कोशिश है कि ऐसे लोगों और शिक्षकों की जिंदगी और कार्यों से देश-दुनिया को रू-ब-रू करायें, जो हमेशा के लिए प्रेरणा बन गये, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश और समाज को सशक्त बनाने में खपा दी। इसी कड़ी में पेश है दिवंगत शिक्षक ‘राधिका बाबू ’की 99वीं जयंती पर लहरन्यूज डॉट कॉम के विशेष संवाददाता मृत्युंजय प्रसाद की रिपोर्ट और उन्हें हमारी श्रद्धांजलि-

सिल्ली प्रखंड अंतर्गत उच्च विद्यालय बंता-हजाम के पूर्व प्रधानाध्यापक स्व राधिका प्रसाद महतो ‘राधिका बाबू’ एक आदर्श शिक्षक के साथ ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अनुशासन प्रिय और गरीब छात्रों के मसीहा थे।  राधिका बाबू का जन्म 1 मई 1918 को सिल्ली प्रखंड के मुढू गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।

संस्मरण – 99वीं जयंती पर श्रद्धांजलि

 उनकी प्राथमिक शिक्षा तीसरी कक्षा तक प्राथमिक विद्यालय घाघरा में तथा सातवीं कक्षा तक की पढाई मिडिल स्कूल सिल्ली में हुई। इसके बाद आगे की पढ़ाई कर पाना राधिका बाबू के लिए बस की बात नहीं थी ,क्योंकि जब वे छोटे थे, उसी समय उनके पिताजी का निधन हो गया था। लेकिन संयोग ऐसा हुआ कि सिल्ली के तत्कालीन दारोगा राधाकृष्ण लाल की साइकिल की कैरियर राधिका बाबू की करियर बनाने में मददगार साबित हुई ।

हौसले से गरीबी को दी मात

राधिका बाबू सिल्ली मिडिल स्कूल से सातवीं की परीक्षा प्रथम स्थान प्राप्त कर उतीर्ण हुए थे। जिस दिन परीक्षाफल सुनाया गया स्कूल के प्रधानाध्यापक स्कूल से बाहर निकले ही थे कि सड़क पर गुजरते हुए सिल्ली के दारोगा राधाकृष्ण लाल की नजर प्रधानाध्यापक पर पड़ गयी तो वह अपनी साइकिल से उतर गये और सड़क के किनारे दोनों में बातचीत होने लगी। उसी समय छात्र राधिका बाबू भी स्कूल से बाहर आ गये । इसके बाद राधिका बाबू को पता नहीं क्या सुझा, उन्होंने दारोगा की साइकिल की कैरियर पीछे से पकड़ ली और कहा- ए दारोगा साहब! दारोगा ने पीछे मुड़कर देखा तो स्कूल के प्रधानाध्यापक ने बताया -यह राधिका है और क्लास में फर्स्ट आया है , लेकिन अब इसकी पढ़ाई आगे नहीं हो सकेगी। चूंकि उन दिनों रांची में ही हाईस्कूल था और राधिका बाबू की हालत ऐसी नहीं थी कि वह रांची जाकर आगे की पढ़ाई पूरी कर सकें। दारोगा को जब राधिका बाबू की माली हालात की जानकारी हुई तो दारोगा ने प्रधानाध्यापक से कहा कि वह राधिका से पूछें कि क्या वह आगे की पढ़ाई के लिए उनके साथ रांची जायेगा। प्रधानाध्यापक ने जब राधिका बाबू को दारोगा की इच्छा से अवगत कराया तो राधिका बाबू ने अपनी मां से पूछकर बताने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिन के बाद मां की आज्ञा लेकर राधिका बाबू प्रधानाध्यापक के पास आये और रांची जाने के लिए अपनी सहमति दे दी। प्रधानाध्यापक अपने होनहार छात्र को लेकर दारोगा के पास पहुंच गये और बताया कि राधिका आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए आपके साथ रांची जाने को तैयार है। दारोगा जी राधिका बाबू को लेकर रांची आ गये और रांची के बालकृष्णा स्कूल में दाखिला करवा कर अपने हिन्दपीढ़ी स्थित मकान में रहने की भी व्यवस्था करवा दी।

रांची का बालकृष्णा स्कूल, दारोगा जी और राधिका बाबू

राधिका बाबू दारोगा के घर में रहते और उनके घर के कार्यां में हाथ बंटाते हुए बालकृष्णा स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण हुए। दारोगा जी के मार्गदर्शन में राधिका बाबू ने जिला स्कूल प्रांगण स्थित शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय से दो वर्षीय शिक्षक प्रशिक्षण का कोर्स पूरा किया। शिक्षक प्रशिक्षण का कोर्स पूरा होते ही उनकी पहली पोस्टिंग सहायक शिक्षक के रूप में प्राथमिक विद्यालय नवागढ़, अनगड़ा में हुई। इसके बाद उनका स्थानांतरण बुण्डू में हो गया । मिडिल स्कूल बुण्डू में रहते हुए ही वह प्रस्तावित उच्च विद्यालय बुण्डू में भी गणित विषय पढ़ाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने प्राईवेट से आईए एवं 1953 में प्राईवेट से बीए की परीक्षा पास की।

सिल्ली के लिए मन विचलित रहता था

1953 में राधिका बाबू छोटानागपुर राज हाईस्कूल रातू आ गये और छात्रों को शिक्षा देने लगे, लेकिन सिल्ली के बच्चों को कैसे उच्च शिक्षा मिले इस पर उनका मन विचलित होने लगता था। इसी बीच 1959 में राधिका बाबू बंता-हजाम हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक बनकर आये और यहीं के होकर रह गये।

गांव-गांव,घर-घर जाकर बच्चों की प्रेरणा बने

बंता-हजाम हाई स्कूल में आते ही राधिका बाबू गांव-गांव, घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने लगे। जो बच्चे मैट्रिक फेल कर घर में बैठे थे । उन्हें बुलाकर मैट्रिक की विशेष तैयारी करवाने लगे । उनकी कोशिशें रंग लाने लगीं। काफी संख्या में मैट्रिक फेल छात्र मैट्रिक पास कर गये।

गरीब बच्चों को जीने व शिक्षा हासिल करने की राह बतायी

राधिका बाबू गरीबी की मार झेल चुके थे ,इसलिए वह गरीब बच्चों की परेशानियों को अच्छी तरह से समझते थे। गरीब बच्चों के लिए राधिका बाबू एक मसीहा से कम नहीं थे। उन्होंने ऐसे बच्चों की स्कूल की फीस माफ करवायी। उस समय दूर -दूर के छात्र बंता में रहकर पढ़ाई करते थे । राधिका बाबू गरीब छात्रों को सलाह देते थे कि वे बंता में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों का खाना बनाने का कार्य करें और अपनी पढ़ाई करें। ऐसे गरीब छात्रों को वे हमेशा कहते थे कि- नाश्ता नहीं है तो माड़ में थोड़ा भात डालकर खा लो , लेकिन पढ़ाई करो। आज की तारीख में उनके ऐसे दर्जनों छात्र हैं , जिन्होंने खाना बनाकर पढ़ाई की और बड़े -बड़े पदों पर रह कर देश,राज्य और समाज की सेवा कर रहे हैं। उस समय सिल्ली- सोनाहातु में जहां भी शिक्षा की बात होती थी राधिका बाबू का नाम सम्मान के साथ लिया जाता था।

पढ़ाई की शैली के कायल थे छात्र

राधिका बाबू अंग्रेजी, गणित ,भूगोल ,इतिहास और संस्कृत के अच्छे जानकार थे। शुद्व शाकाहारी ,नशे से कोसों दूर ,धोती-कुर्ता पहननेवाले और जमीन पर सोना पसंद करने वाले राधिका बाबू को गीता की भी अच्छी जानकरी थी और गीता के कई अध्याय तो उनको कंठस्थ थे। उनके पढ़ाने की शैली गजब की थी। छात्र उनकी पढ़ाई की शैली के कायल थे। हर छात्र उनकी कक्षा में मौजूद रहना चाहता था। वह बंता-हजाम हाई स्कूल में 1959 से 1978 लगातार 19 वर्षां तक प्रधानाध्यापक के पद पर रहे। 60 वर्ष की उम्र पूरी होने पर 30 अप्रैल 1978 को राधिका बाबू सेवानिवृत होने वाले थे , लेकिन उनकी कार्य कुशलता के कारण तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी ने राधिका बाबू को दो वर्ष का सेवा विस्तार दिया था। हालांकि सेवा विस्तार के छह माह बाद ही अचानक वह बीमार पड़ गये और 9 नवंबर 1978 को इलाज के दौरान आरएमसीएच, रांची में उनका निधन हो गया । उनके निधन का समाचार मिलने पर पंचपरगना क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी थी । राधिका बाबू की लोकप्रियता का ही परिणाम था कि उनके निधन पर सिल्ली प्रखंड और आसपास के कई स्कूलों को शोक में एक दिन के लिए बंद कर दिया गया था।

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