हमेशा याद आएंगे पद्मश्री प्रो. दिगंबर हांसदा

♦डाॅ बीरेंन्द्र कुमार महतो ♦

यादें शेष: प्रो. दिगंबर हांसदा के साथ डाॅ बीरेन्द्र कुमार महतो बातचीत करते हुए।
इंकलाबी नौजवान लेखक संघ ने प्रो. दिगंबर हांसदा के निधन को झारखंड के लिए बड़ी क्षति बताया है।

रांची: इंकलाबी नौजवान लेखक संघ ने पद्मश्री दिगंबर हांसदा जी के निधन गहरा दुःख व्यक्त किया है। संघ अध्यक्ष सुनील मिंज और महासचिव डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने संयुक्त रुप से कहा कि यह झारखंड के आदिवासी व मूलवासियों के लिये बहुत बड़ी क्षति है। संताली भाषा व साहित्य को एक नयी पहचान दिलाने में इनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
दिगंबर हांसदा ने आदिवासियों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान के लिए झारखंड ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी काम किया।

इस गांव में हुआ था जन्म
पद्मश्री प्रो. दिगम्बर हांसदा का जन्म 16 अक्टूबर 1939 को पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित घाटशिला के डोभापानी (बेको) में करनडीह के सारजोमटोला में रहते थे। लंबी बीमारी के बाद करनडीह में ही 81 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
कुशाग्र बुद्धि हांसदा की प्राथमिक शिक्षा राजदोहा मिडिल स्कूल से हुई।

रांची विवि से हासिल की उच्च शिक्षा
दिगंबर हांसदा ने बोर्ड की परीक्षा मानपुर हाई स्कूल से पास की थी। सन् 1963 में रांची विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान विषय में स्नातक और 1965 में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। उसके बाद टिस्को आदिवासी वेलफेयर सोसायटी से जुड़ गये। कॉलेज के दिनों से ही पद्मश्री प्रो. हांसदा समाजसेवा व जनजातीय हितों की रक्षा के कार्यों में रुचि लेने लगे थे। इनकी पत्नी पार्वती हांसदा और एक पुत्री का स्वर्गवास पूर्व में हो चुका है, इनके दो पुत्र व दो पुत्रियाँ हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में अहम रहा योगदान
वह केन्द्र सरकार के जनजातीय अनुसंधान संस्थान एवं साहित्य अकादमी के भी सदस्य रह चुके थे। पद्मश्री हांसदा ने सिलेबस निर्माण के लिए कई पुस्तकों का देवनागरी से संथाली में अनुवाद भी किया। उन्होंने इंटरमीडिएट, स्नातक और स्नातकोत्तर के लिए संथाली भाषा का कोर्स संग्रहित किया। उन्होंने भारतीय संविधान का संताली भाषा की ओलचिकि लिपि में अनुवाद करने के साथ ही कई पुस्तकें भी लिखीं। स्कूल कॉलेज की पुस्तकों में संताली भाषा को जुड़वाने का श्रेय पद्मश्री प्रो हांसदा को ही जाता है। प्रो. हांसदा लालबहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज के प्राचार्य एवं कोल्हान विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य भी रहे। रिटायरमेंट के बाद भी काफी समय तक कॉलेज में संताली की कक्षाएँ लेते रहे।
जनजातीय गरीब किसान परिवार में जन्में हांसदा ने कई मुकाम हासिल किये
वर्ष 2017 में पद्मश्री प्रो दिगंबर हांसदा आईआईएम बोधगया के गवर्निंग बॉडी के सदस्य बनाए गए थे। प्रो हांसदा ने ग्रामीण क्षेत्रों में टाटा स्टील एवं सरकार के सहयोग से कई विद्यालय प्रारम्भ करवाये। प्रो. हांसदा ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति (संताली भाषा) के सदस्य भी थे। सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वैज मैसूर, ईस्टर्न लैंग्वैज सेंटर भुवनेश्वर में संताली साहित्य के अनुवादक, आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी जमशेदपुर, दिशोम जोहारथन कमिटी जमशेदपुर एवं आदिवासी वेलफेयर ट्रस्ट जमशेदपुर के अध्यक्ष रहें।जिला साक्षरता समिति पूर्वी सिंहभूम एवं संताली साहित्य सिलेबस कमेटी, यूपीएससी नयी दिल्ली और जेपीएससी झारखंड के सदस्य के पद पद पर भी कार्य कर चुके थे।
वर्ष – 2018 में मिला पद्मश्री सम्मान
वर्ष 2018 में संथाली भाषा के विद्वान प्रो. दिगम्बर हांसदा को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। ऑल इण्डिया संताली फिल्म एसोसिएशन द्वारा प्रो. हांसदा को लाईव टाइम ऐचिवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया था। वर्ष 2009 में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन ने उन्हें स्मारक सम्मान से सम्मानित किया। भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा उन्हें डॉ. अंबेदकर फेलोशिप प्रदान किया जा चुका है। इंटरनेशनल फ्रेंडशीप सोसायटी नई दिल्ली ने इनको भारत गौरव सम्मान से सम्मानित किया था। इसके अलावा 37 बटालियन एनसीसी व अन्य कई संस्थानो द्वारा पद्मश्री प्रो. हांसदा को सम्मानित किया जा चुका है। पद्मश्री प्रो हांसदा का जाना
लंबी बीमारी के बाद करनडीह स्थित आवास पर 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
शुक्रवार को राजकीय सम्मान के साथ बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। गुरुवार की सुबह उनका निधन हो गया था।

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