♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची: रांची में जनजातियों के संवैधानिक अधिकार विषय पर आयोजित कार्यशाला में जनजातियों की घटती जनसंख्या पर चिंता जतायी गयी। कहा गया कि आदिवासियों की जनसंख्या का प्रतिशत 38.03 से घटकर 26.02 रह गया है। कार्यशाला में झारखंड के पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी के बयान पर भी गौर किया गया । झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता डॉ राकेश किरण महतो ने कार्यशाला में विचार व्यक्त करते हुए बाबूलाल मरांडी के उस बयान पर प्रतिक्रिया दी जिसमें कहा गया था कि जनजाति समाज जन्म से ही हिंदू हैं। महतो ने बताया कि इस बयान से बाबूलाल मरांडी का असली चेहरा फिर से बेनकाब हो गया है। उनका यह बयान राज्य के लाखों आदिवासियों के हितों के खिलाफ है। जनजातीय समाज प्रकृति की पूजा करते हैं, जिसका किसी भी धर्म के साथ कोई सीधा संबंध नहीं है। वे कर्मकांड में विश्वास नहीं करते हैं। आदिवासी समाज में वर्ण-व्यवस्था नहीं है। वे अपने आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार शादी-विवाह करते हैं। उनकी प्रथागत जनजातीय आस्था के अनुसार विवाह और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में सभी विशेष अधिकारों को बनाए रखने के लिए उनके जीवन जीने का अपना तरीका है। उनकी शारीरिक संरचना, रंग-रूप, परंपरा, जीवन-शैली, उनके रस्मो- रिवाज, उनकी संस्कृति, उनके पर्व-त्यौहार, पूजा-पाठ, पूजा की पद्धति, पूजा-स्थल सब कुछ हिंदुओं से अलग हैं।अंग्रेजी शासनकाल में भी आदिवासियों ने अपनी एक अलग पहचान बनाए रखी है।
डॉ. महतो ने बताया कि झारखंड राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए आगामी जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रावधान करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित करवाया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आदिवासियों की इस बहुप्रतीक्षित मांग पर क्या फैसला लेती है। महतो ने बताया कि आजाद भारत में आदिवासियों के लिए अलग धर्मकोड की मांग सबसे पहले 1970 के दशक में कांग्रेस नेता कार्तिक उरांव ने संसद में उठाई थी,जिसे पदमश्री डॉ रामदयाल मुंडा ने आगे बढ़ाया था।