♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि झारखंड में मौजूदा हालात हेल्थ इमरजेंसी जैसे हैं। इसे मजाक में नहीं लिया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रवि रंजन की अदालत ने टिप्पणी की कि कम से कम मरने वालों को तो शांति प्रदान करने की व्यवस्था कीजिए।
सुनवाई के दौरान झारखंड के स्वास्थ्य निदेशक और सदर अस्पताल के सिविल सर्जन वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के समक्ष उपस्थित हुए। अदालत ने पुनः मंगलवार को इस मामले में सुनवाई की तिथि निर्धारित की है. कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव, रांची डीसी, रिम्स निदेशक, रांची नगर निगम के अपर नगर आयुक्त और सिविल सर्जन को उपस्थित रहने का निर्देश दिया है.
अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें लगा था कि सरकार कोरोना के पहले फेज से सबक लेकर चेत गयी होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं सिविल सर्जन द्वारा अदालत में दिये गये एफिडेविट पर विरोधाभास दिखने पर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर राज्य के चीफ जस्टिस का आवास कोरोना की जद में है, तो सिविल सर्जन की भूमिका घोर अनदेखी करने वाली प्रतीत होती है।
रिम्स में उपकरण खरीद पर स्वास्थ्य सचिव ने अदालत को बताया कि गवर्निंग बॉडी की बैठक नहीं होने के कारण खरीदारी नहीं हो पायी। इस पर अदालत ने कहा कि कोर्ट के द्वारा 2 दिनों के अंदर सीटी स्कैन मशीन की खरीदारी पर निर्णय लेने के लिए कहा गया था और इसका मतलब 2 दिन ही होता है। स्वास्थ्य सचिव ने कोर्ट को बताया कि झारखंड में 18 मार्च को सेकेंड वेब शुरू हुआ। अब तक 13933 एक्टिव के राज्य भर में पाये गये हैं. विभाग कोरोना से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है। रोजाना राज्य में 30,000 टेस्टिंग की जा रही है।