श्रद्धांजलि: डॉ गिरिधारी राम गौंझू – ‘अखरा निंदाय गेलक’

♦PUSHKAR MAHTO/Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO♦

झारखंड के प्रमुख रचनाकारों में डॉ गिरिधारी राम गौंझू गिरिराज का नाम प्रकाशपुंज नक्षत्र की तरह चमकता था। वह हिंदी और नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ थे। उनकी रचनाओं में झारखंड के संवेदनाएं सहज ही झलकती थी। 5 दिसंबर 1949 ईस्वी में बेलवादाग खूंटी जिला में जन्मे डॉ गिरिधारी राम गौंझू का जीवन संघर्षपूर्ण था। प्रारंभिक शिक्षा खूंटी में करने के पश्चात एम. ए, बी. एड, एलएलबी एवं पीएचडी की शिक्षा-दीक्षा ली। उनकी प्रकाशित रचनाओं में कोरी भइर पझरा, नागपुरी गद तइरंगन, खुखड़ी- रूगडा, सहित अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में उनकी लिखने प्रकाशित होती रही हैं। नागपुरी त्रैमासिक पत्रिका गोतिया के कार्यकारी संपादक रहे।


 ‘अखरा निंदाय गेलक’ नाटक रचना झारखंड की ज्वलंत समस्या पलायन जैसे संवेदनशील विषय को लेकर प्रकाशित की गई थी, जो काफी लोकप्रिय रही और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पाठ्यक्रम के रूप इसे शामिल किया गया।


वह रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में बतौर अध्यक्ष के रूप में मार्च 20011 से मार्च 2013 तक रहे। मृदुभाषी और सर्व सुलभ होने के नाते उनका व्यक्तित्व काफी उदार रहा है। उन्हें झारखंड रत्न सहित कई प्रकार के सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। साधारण कद काठी वाले डॉ गिरिधारी राम गौंझू का व्यक्तित्व काफी असाधारण रहा। पदमश्री मुकुंद नायक जी उनके सहिया रहे हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से उनका सीधा सरोकार था वह आम जनजीवन से मिलकर काफी खुश रहते थे। छात्र-छात्राओं को हमेशा वे प्रोत्साहित करते और सहयोग भी करते थे। उनके कृतित्व को सहजता से भुलाया नहीं जा सकता है।

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