रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पद्मश्री स्व. डॉ रामदयाल मुंडा की जयंती मनायी गयी। उन्हें आदिवासियों और मूलवासियों का पैरोकार बताया गया। वह वंचितों-शोषितों की आवाज थे। विकास को वह कागज की बजाय जमीन पर देखना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने पंचायतों और गांवों के विकास के लिए प्रखंड स्तर पर आंदोलन का एलान किया था। हालांकि यह सबकुछ हो पाता इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी। लेकिन वक्त की पुकार है कि उनके सपने का हम नया झारखंड बनायें, जहां विकास का लाभ समाज के अंतिम पायदान में बैठे व्यक्ति तक पहुंच सके। शासन व्यवस्था गरीबों,शोषितों के लिए काम करे।
♦Dr. BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की जयंती मनायी गयी। मौके पर सबों ने पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की तस्वीर पर पुष्पांजलि देकर अपनी श्रद्धा अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने किया।
डॉ मुंडा आदिवासियों और मूलवासियों की आवाज थे : डॉ हरि उरांव
अध्यक्षता करते हुए टीआरएल विभाग के अध्यक्ष डॉ हरि उरांव ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा झारखंड की चेतना के अग्रदूत थे। देश के एक प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत थे। उन्होंने कहा कि एक छात्र के रूप में मैंने उन्हीं से झारखंड और झारखंडियत को समझ पाया। उन्होंने आदिवासियों और मूलवासियों के अधिकारों के लिये देश के विभिन्न प्रांतों से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक आवाज उठायी। साथ ही दुनिया के आदिवासी समुदायों को संगठित किया और झारखंड में जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया।
डॉ मुंडा का कोई विकल्प नहीं : डॉ यूएन तिवारी
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा- पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा का कोई जोड़ नहीं हो सकता है। उनका व्यक्तित्व सहज,सरल और विराट था। वह तकरीबन उन्नीस भाषाओं के ज्ञाता थे। मानव कल्याण के लिये उनका पदार्पण हुआ था। विश्व विजय की सोच रखते थे। समग्र रूप से मानव के सम्पूर्ण विकास की सोच रखने वाले डॉ मुंडा ने “जे नाची, से बाँची“ का मूलमंत्र दिया। आज हमें उस मंत्र के मूल मर्म को समझने की आवश्यकता है।
डॉ मुंडा का था विलक्षण व्यक्तित्व : दिनमणि
प्राध्यापक दिनेश कुमार दिनमणि ने कहा- पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा का व्यक्तित्व विराट और विलक्षण था। उन्हीं से प्रभावित होकर मैंने जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा की पढ़ाई की, ताकि झारखंड की भाषा, संस्कृति और झारखंडियत को समझ सकूँ। उन्होंने कहा कि डॉ मुंडा ने पूरी दुनिया को झारखंडी संस्कृति से अवगत कराया। उनके उद्देश्यों को हमें आत्मसात करने की आवश्यकता है।
सोच में दूरदर्शिता थी : डॉ सरस्वती गागराई
प्राध्यापक डॉ सरस्वती गागराई ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा के जीवन का हमें अनुसरण करना चाहिए। उनकी सोच में दूरदर्शिता थी। उनकी उस सोच को हमें संजोग कर रखने की आवश्यकता है।
डॉ मुंडा के जीवन का अनुसरण करना चाहिए : डॉ किरण
प्राध्यापक डॉ किरण कुल्लू ने कहा, पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा जो कहते थे उसे पूरा करने के पश्चात् ही दम लेते थे। हमें उनका अनुसरण करना चाहिये। प्राध्यापक करम सिंह मुंडा ने पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा के जीवन पर प्रकाश डाला।
इनकी रही मौजूदगी
इस अवसर पर प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, गुरूचरण पूर्ति, डॉ उपेन्द्र कुमार, अरूण अमित तिरंगा, अलबिना जोजो के अलावा अन्य प्राध्यापक गण एवं शोधार्थी उपस्थित थे।