रांची विवि के टीआरएल विभाग में करम महोत्सव, जनजातीय गीत-नृत्य पर झूमे लोग

♦Dr. BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
  रांची : प्रमुख जनजातीय पर्व करम के मौके पर रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में करम महोत्सव का शानदार आयोजन किया गया। इस दौरान कोरोना गाइडलाइन का का पूरी तरह से पालन हुआ। विभाग के पद्मश्री डॉ रामदयाल मुण्डा अखड़ा में आयोजित करम महोत्सव का संचालन किशोर सुरीन, धन्यवाद ज्ञापन डॉ उमेश नन्द तिवारी , स्वागत गान युगेश प्रजापति एवं साथियों ने प्रस्तुत किया। करम महोत्सव में विभाग के शोधार्थियों एवं छात्रों के द्वारा पारम्परिक गीत-नृत्य प्रस्तुत कर झारखंड की संस्कृति की जबर्दस्त बानगी पेश की गयी। करम महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो कामिनी कुमार, विशिष्ट अतिथि डॉ करमा उराँव, कुलानुशासक प्रो.(डॉ) त्रिवेणी नाथ साहु, कुलसचिव डॉ मुकुल चन्द मेहता, सीसीडीसी डॉ राजेश कुमार, डीएसडब्ल्यू डॉ राजकुमार, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो (डॉ) कृष्ण चन्द्र टुडू, पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख एवं चेन्नई के प्रमोद भगत मौजूद थे।
9 विभागों के लिए अलग-अलग एचओडी की अधिसूचना शीघ्र : कुलपति
रांची विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो कामिनी कुमार ने कहा, करम लोक पर्व का सीधा संबंध कृषि से है। पर्यावरण के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। कृषक समाज लोक पर्वों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता है। ऐसे में करम पर्व का महत्व बढ़ जाता है। यह पर्व हमें सामूहिकता का पाठ पढ़ाता है। उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे में भी जीवन है, इसलिये हमें इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है। करमा सिर्फ एक उत्सव तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह हमारी एक संस्कृति है। यही हमारी विरासत है। इसे हमें सहेज कर रखने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि अब यह विभाग फैकल्टी आफ टीआरएल के नाम से जाना जायेगा। यहां नौ विषयों के विभागों के लिए के अलग-अलग विभागाध्यक्ष होंगे। इसकी अधिसूचना एक सप्ताह के भीतर जारी कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह विभाग सेन्टर आफ एक्सीलेंस बन चुका है। शीघ्र ही पेटेंट की दिशा में विभाग के द्वारा काम किया जायेगा।
प्रकृति हम सबों का पालन करती है : पद्मश्री मधु मंसुरी
पद्मश्री मधु मंसुरी हंसमुख ने “गाँवे गाँवे अखरा निंदाय गेलई, अखरा जगावे चलु… अखरा बचावे चलु…! घंटा बजाय देवा, अखरा गहजाय देवा…!“ गीत प्रस्तुत करने के पश्चात् कहा कि यह प्रकृति हम सबों का पालन करती है, इसलिये हम सबों का भी दायित्व प्रकृति को बचाये रखना हमारा दायित्व बनता है।

मानव व प्रकृति से जुड़ा पर्व है करम : डॉ हरि उरांव
टीआरएल विभाग के अध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा, यह करम और धरम से संबंधित पर्व है। मानव जीवन के लिए यह पर्व महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह उत्साह और उमंग का पर्व है। यह मानव और प्रकृति के बीच गहरे व अटूट तथा अनुपम संबंध को दर्शाता है। उन्होंने करम पर्व की महत्ता पर प्रकाश डाला।
क्रम अच्छे कर्म की देता है प्रेरणा : प्रो टीएन साहु
करम कथा वाचन रांची विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो त्रिवेणी नाथ साहु द्वारा किया गया। कहा, ‘करमा’ शब्द कर्म तथा करम को इंगित करता है। मनुष्य नियमित रूप से अच्छे कर्म करें और भाग्य भी उसका साथ दे, इसी कामना के साथ करम देवता की पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि यह पर्व हम सभी को अपने जीवन में अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देता है।
पेड़-पौधे और जंगल के जीवन मुश्किल : प्रो करमा उरांव
पूर्व विभागाध्यक्ष मानवशास्त्री प्रो करमा उराँव ने कहा, पद्मश्री डॉ रामदयाल मुण्डा ने ’जे नाची से बांची’ का जो मूलमंत्र दिया जो इस विभाग के लिए वरदान साबित हो रहा है। पर्यावरण के साथ हमारा रिश्ता कैसे बना रहे, इसकी महत्ता को यह करम पर्व दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हम लोग पेड़-पौधे और जंगल के बिना नहीं जी सकते, इसलिए इनकी रक्षा और देखरेख करने के लिए हमारे यहाँ कई पर्व मनाये जाते हैं, जिसमें करमा पर्व सबसे बड़ा पर्व है. इस पर्व पर लोग पेड़ की पूजा करते हैं कुछ लोग नये पौधे लगाते हैं।
पर्यावरण के प्रति सजग करता है करमा : डॉ एमसी मेहता
रांची विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ मुकुल चन्द्र मेहता ने कहा कि करमा एक त्योहार मात्र नहीं है बल्कि दिलों को जोड़ने का काम करता है साथ ही पर्यावरण के प्रति हमें सजग करते हुए कई संदेश देता है। करमा आपसी प्रेम व सौहार्द का प्रतीक भी है। यह पर्व भाई-बहन के अटूट प्यार व पवित्र रिश्तों को भी बतलाया है।
संस्कृति ही जीवन जीने का सूत्र है : डॉ राजकुमार
डीएसडब्ल्यू डॉ राजकुमार ने कहा कि वैश्विक स्तर पर रांची विश्वविद्यालय की पहचान में इस जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग का बहुत बड़ा योगदान है। इस विभाग को निरंतर गुणात्मक रुप से आगे बढ़ाने में विश्वविद्यालय प्रशासन प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि हम अपनी संस्कृति को भूले नहीं क्योंकि जो खुशी हमें हमारी संस्कृति में मिल सकती है वो दुनिया में किसी भी विधा में नहीं है। संस्कृति ही जीवन जीने का सूत्र है।

इनकी रही मौजूदगी
करम महोत्सव में पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ कृष्ण चन्द्र टुडू, डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ सविता केशरी, कुमारी शशि, डॉ दमयन्ती सिंकु, डॉ सरस्वती गागराई, डॉ निरंजन कुमार, डॉ किरण कुल्लू, दिनेश कुमार, किशोर सुरीन, करम सिंह मुण्डा, सुबास साहु, संतोष कुमार भगत, अनुराधा मुण्डू, डॉ पार्वती मुण्डू, अरुण अमित तिग्गा, धीरज उराँव, गुरुचरण पूर्ति, जयप्रकाश उराँव, नरेन्द्र दास, अमित चौधरी, संदीप कुमार महतो, मानिक कुमार, रवि कुमार, प्रवीण सिंह, बसंत कुमार, सुनीता कुमारी, मीना कुमारी, पप्पू बाण्डो, प्रभा देवी, धरमा के अलावा विभाग के अन्य सहायक प्राध्यापक, शोधार्थी, छात्र छात्राएँ व साहित्य संस्कृति आप्रेमी मौजूद थे।

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