कुॅड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया के सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा- पहले भाषा और तब लिपि

♦Laharnews.com Correspondent♦

  रांची : कुॅड़ुख़ लिटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया नई दिल्ली के तत्वधान में 23 एवं 24 अक्टूबर को कुॅड़ुख़ भाषा का 15 वां ऑनलाइन राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ।
कुॅड़ुख़ लिटरेरी सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ उषा रानी मिंज ने कहा, कुॅड़ुख भाषा उरांव जनजातियों की मातृभाषा है। इसे घर, परिवार और समाज में अपनी बोलचाल की भाषा के तौर पर उपयोग किया जाना चाहिए। समाज से बाहर भी इस भाषा को ले जाने की जरूरत है। कुॅड़ुख़ भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए विधायक सांसद व मंत्रियों के बीच दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने पर उन्होंने जोर दिया। उन्होंने कहा- कुॅड़ुख़ भाषा को सरल बनाना होगा कुॅड़ुख के लिए अभी नई लिपि की आवश्यकता नहीं है । सबसे पहले भाषाए तब लिपि। भाषा के बिना लिपि की कल्पना नहीं की जा सकती।
सोसाइटी के राष्ट्रीय सचिव श्री नावोर एक्का ने सोसाइटी की गठन एउद्देश एकार्य एमहत्व एवं समाज में प्रभाव विषय पर प्रकाश डाला।
सोसाइटी के द्वारा प्रकाशित कुॅड़ुख डहरें शोध पत्रिका के राष्ट्रीय संपादक डॉ हरि उरॉव ने कहा कि सभी कुॅड़ुख़ भाषा.भाषी प्रदेशों में कुॅड़ुख भाषा की पढ़ाई प्राथमिक स्तर से कराने की दिशा में पहल करनी होगी।
सोसाइटी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो महेश भगत ने कहा, कुॅड़ुख़ भाषा को नई लिपि जैसी बीमारी से बचाना होगा। भाषा जीवित रहेगी तभी लिपि की कल्पना की जा सकती है। संपूर्ण साहित्य जगत में कुॅड़ुख़ भाषा के साहित्य को स्थापित करने की आवश्यकता है ।
प्रोफेसर चौथी उरांव ने कहा कि कुॅड़ख़ भाषा में अनेकानेक संयुक्ताक्षर शब्द है और यही कुॅड़ुख़ भाषा की विशेषता है ।परंतु कुॅड़ुख़ भाषा की तोलोंग सिकी लिपी में संयुक्ताक्षर का कोई स्थान नहीं है। ऐसी स्थिति में तोलोंग लिपि को कुॅड़ुख़ भाषा के लिपि के रूप में स्वीकार करना बहुत बड़ी भूल होगी।

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