♦Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र में शनिवार को डॉ. बन्दे खलखो द्वारा लिखित एवं कुँड़ुख लिटररी सोसाईटी आफ इंडिया, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित “कुँड़ुख शिष्ट साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन” पुस्तक का लोकार्पण कुलपति डॉ कामिनी कुमार ने किया।
कुँड़ुख भाषा साहित्य को एक नयी दिशा मिली: कुलपति
बतौर मुख्य अतिथि डॉ कामिनी कुमार ने कहा- साहित्य समाज का आईना होता है। कुँड़ुख भाषा के युवा साहित्यकार डॉ बन्दे खलखो ने कुँड़ुख भाषा साहित्य को एक नयी दिशा दी है। कहा, जल्द ही इस माह के अन्त तक विश्वविद्यालय के द्वारा पुस्तक मेला का आयोजन किया जायेगा। पुस्तक मेला में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं के द्वारा प्रकाशित पुस्तकों को शामिल किया जायेगा, ताकि उनकी प्रतिभा से बाहर के लोग भी रूबरू हो सकें।
नये अध्याय की शुरूआत हुई है: डॉ हरि उराँव
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुये जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के समन्वयक डॉ. हरि उराँव ने कहा- साहित्य समाज को प्रभावित करती है। भाषा जैसे-जैसे बढ़ेगी, वैसे-वैसे समाज का विकास होगा। उन्होंने कहा कि युवा साहित्यकार डॉ बन्दे खलखो ने कुँड़ुख में साहित्य रचना कर एक नये अध्याय को जन्म दिया है। युवाओं से कहा- यहाँ पढ़ने-पढ़ाने के अलावा साहित्य लेखन के लिए भी उन्हें आगे आना होगा। हमारे बीच में कई ऐसे विधाएं हैं जिसपर शोध की जरूरत है।
साहित्य हमारा प्राण तत्व है: डॉ यूएन तिवारी
अतिथियों का स्वागत करते हुए नागपुरी भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि साहित्य हमारा प्राण तत्व है। साहित्य के बगैर समाज के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। अपनी भाषाओं में साहित्य का सृजन जरूरी है।
भाषा हमारी पहचान है: डॉ. खालिक अहमद
डॉ. खालिक अहमद ने कहा- युवा साहित्यकार डॉ बन्दे खलखो ने “कुँड़ुख शिष्ट साहित्य का विश्लेषणात्मक अध्ययन” की रचना कर कुँड़ुख समाज को एक तोहफा दिया। इसके लिए पूरा उराँव समाज ऋणी रहेगा। उन्होंने कहा कि भाषा से हमारी पहचान होती है। आत्मीयता की झलक मिलती है। आने वाले युवा पीढ़ी के लिए लेखक ने मंच तैयार करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि जो शब्द व भाषाएँ विलुप्त हो रही हैं उस पर भी काम करने की जरूरत है।
कुँड़ुख साहित्य को आसानी से समझा जा सकेगा: डॉ वृन्दावन महतो
मारवाड़ी कालेज के प्राध्यापक डॉ वृन्दावन महतो ने कहा- इस पुस्तक के आने से हम कुँड़ुख साहित्य को आसानी से समझ सकेंगे। आने वाली पीढ़ी अपने इस साहित्य रचना के माध्यम से अपने समाज और साहित्य को जान और पहचान सकेंगे।
अपनी माटी की भाषा में हो साहित्य का सृजन: डॉ बन्दे खलखो
लेखक कवि डॉ बन्दे खलखो ने कहा- मेरी रचना में मैंने अपने शोध अवधि की तमाम अनुभवों को समाज के सामने साहित्य के रुप में रखने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति अथवा समाज को खत्म करना है तो उसकी भाषा संस्कृति को खत्म कर दें, वह स्वतः खत्म हो जायेगा। इसलिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी माटी की भाषा में साहित्य रचने व गढ़ने की आवश्यकता है तभी हम और हमारा अस्तित्व बच पायेगा।
धन्यवाद ज्ञापन प्राध्यापक बीरेन्द्र उराँव और मंच संचालन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने किया।
इनकी रही मौजूदगी
लोकार्पण समारोह में प्राध्यापक डॉ एस. मेरी सोरेंग, डॉ. वृन्दावन महतो, डॉ. गीता कुमारी सिंह, डॉ. नलय राय, कुमारी शशि, बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ. राकेश किरण, डॉ रीझू नायक, डॉ. दमयन्ती सिंकु, डॉ. सरस्वती गागराई, डॉ. निरंजन महतो, अनुराधा मुण्डू, डॉ. किरण कुल्लू, बीरेन्द्र उराँव, डॉ. उपेन्द्र कुमार, करम सिंह मुण्डा, शकुंतला बेसरा, दिनेश कुमार दिणमनी, गुरूचरण पूर्ति, अबनेजर टेटे, नमिता पूनम, सुखराम उराँव, जोहे भगत के अलावे विभाग के अन्य प्राध्यापक, शिक्षाविद्, साहित्यकार एवं शोधार्थी-छात्रगण मौजूद थे।