♦ 5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर भारत का झंडा फहराया
♦Dr. BIRENDRA KUMAR MAHTO ♦
रांची : झारखंड के आनंद व अंजनी ने एवरेस्ट बेस कैंप पर तिरंगा लहराने के पश्चात् सकुशल वापसी की है. अंजनी कुमारी ने अपने पति आनंद गौतम के साथ 13 मार्च को तिरंगा झंडा एवरेस्ट बेस कैंप पर लहराया. अंजनी कुमारी पेशे से डाटा साइंटिस्ट है और शेल नाम के एमएनसी में कार्यरत हैं. उनके पिता का नाम डा. वीरेंद्र प्रसाद है और माता का नाम रंजू प्रसाद है. अंजनी के पिता रांची यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रह चुके हैं. वहीं आनंद गौतम पेशे से कंसलटेंट हैं और केपीएमजी नामक एमएनसी में कार्यरत हैं. इनके पिता विजय कुमार केशरी और माता डॉ सबिता केशरी हैं. गौरतलब हो कि एवरेस्ट बेस कैंप की ऊंचाई समुंद्री तल से 17598 फीट (5364 मी.) है और उस ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा 50 फीसदी होती है. मार्च के महीने में वहां का तापमान लगभग शून्य से 20 डिग्री नीचे होता है. अंजनी और आनंद ने इस ट्रेक की तैयारी 4 महीने से की थी. दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत लुक्ला नामक स्थान से की थी जो कि नेपाल में स्थित है. गौरतलब है कि लुल्ला एयरपोर्ट को दुनिया के सबसे खतरनाक एयरपोर्ट में माना जाता है. दोनों ने इस ट्रेक की शुरुआत लुक्ला से की और 7 किलोमटर तय करने के बाद अगले दिन फकडिंग पहुंचे. फकडिंग की ऊंचाई 2610 मी है. यहाँ रात गुजारने के बाद दूसरे दिन 7 मार्च को नामचे बाजार के लिए निकल पड़े. नामचे बाजार 3440 मी पर स्थित है जिसकी दूरी फकड़िंग से 10 किलोमीटर है. अगले दिन दोनो देबुचे के लिए निकल पड़े, जिसकी ऊंचाई 3860 मी है और नामचे से 9 किलोमीटर दूर है और वहां खुखू छेत्र का सबसे विशाल बौद्ध मठ है. उसके अगले दिन 11 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनो डिंगबोचे पहुंचे, जिसकी ऊंचाई 4360 मी है. अब तक ऑक्सीजन का स्तर 75 फीसदी हो चुका था. अगले दिन 18 किलोमीटर की दूरी तय करके दोनों लोबुचे पहुंचे जो कि 4940 मी की ऊंचाई पर है. अगले दिन लोबूचे से गोरक्षेप होते हुए दोनो एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और वहां भारत का झंडा लहराया. इस तरह से 80 किलोमीटर की दूरी एवं 2900 मी की ऊंचाई की पैदल यात्रा तय करके 5364 मीटर की ऊंचाई पर माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी बेस कैंप पर भारत का झंडा फहराया. गौरतलब है कि 13 मार्च को वहाँ का तापमान शून्य से 20 डिग्री नीचे था और बर्फीली हवा के साथ बर्फबारी भी हो रही थी. यह रास्ता बेहद कठिन है और इन सभी कठिनाइयों को लांघते हुए शानदार सफलता हासिल की है और देश का मान बढ़ाया है। दोनों ने बताया कि यह एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक एक जीवन भर का एक अनोखा अनुभव बन गया और यह उन्हें जिंदगी की दूसरी मुश्किल परिस्थितियों से लड़ने की भी प्रेरणा देगा। यह चढ़ाई कई तरह से बहुत ही कठिन मानी जाती है. उन्होंने बताया कि यात्रा शुरू करने से पहले ही ट्रेकर्स पर इसका प्रभाव पड़ सकता है. इस यात्रा के लिए कई महीनों कि तैयारी करनी पड़ती है.