♦ 25000 झारखंड आंदोलनकारी 81 विधायकों का बजट सत्र में करेंगे घेराव
♦Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO ♦
रांची: झारखंड आंदोलनकारी संघर्ष मोर्चा के तत्वावधान में रांची के मोरहाबादी स्थित बापू वाटिका के बगल में झारखंड आंदोलनकारी दिवंगत लाल रण विजयनाथ शाहदेव की जयंती सांस्कृतिक दिवस के तौर पर मनायी गयी। इस अवसर पर लोक गायिका सीमा देवी के द्वारा वीर रस के गीत संगीत प्रस्तुत किए गए। इसके अलावा साथ पदमश्री एवं अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार मुकुंद नायक, पदमश्री मधु मंसूरी हंसमुख, लोक गायक क्षितिज कुमार राय एवं कवि रत्न चंद्रदेव सिंह ने लाल रण विजयनाथ शाहदेव के सम्मान में गीत प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वरीय झारखंड आंदोलनकारी दीनबंधु लोहरा मुख्य रूप से उपस्थित थे, जिन्हें प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इनके साथ-साथ सीडी सिंह एवं सीमा देवी को भी प्रतीक चिन्ह एवं शाॅल भेंट कर सम्मानित किया गया।
झारखंड आंदोलनकारियों के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है: राजू महतो
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष राजू महतो ने कहा, झारखंड आंदोलनकारियों के मान-सम्मान, स्वाभिमान, पहचान एवं अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है। 25000 झारखंड आंदोलनकारी बजट सत्र के दौरान 1 मार्च को सभी 81 विधायकों का घेराव सांस्कृतिक रूप के साथ करेंगे। उन्होंने कहा कि झारखंड आंदोलनकारियों ने अपने मान-सम्मान पहचान के लिए उलगुलान का ऐलान कर दिया है। अब आर पार की सीधी लड़ाई होगी और इसका आगाज आज हो चुका है।
झारखंड के लिए वफादारी निभाने वाले आज दर-दर भटक रहे हैं: मधु मंसूरी
पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख ने कहा, रणविजय जी साहित्य, राजनीति और आंदोलन के क्षेत्र में एक मंजे हुए व्यक्तित्व थे। वह असली आंदोलनकारी थे। उन्होंने कहा – झारखंड आंदोलन में जितने भी क्रांतिकारी गीत मैंने लिखा और गाया वो सभी गीतों को लिखने और गाने के लिए रणविजय जी ने ही प्रेरित किया था। मेरे प्रेरणा का वह स्रोत रहे। उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य के प्रति वफादारी दिखाने वाले आज दर-दर भटक रहे हैं।
झारखंड में एक और सांस्कृतिक आंदोलन की आवश्यकता: क्षितिज कुमार राय
क्षितिज कुमार राय ने रणविजय के साथ बीते स्वर्णिम क्षणों को साझा करते हुए कहा, रणविजय जी ऐसे अकेला व्यक्ति थे, जिन्होंने झारखंड आंदोलन को गति प्रदान करने का काम किया। उन्होंने कलाकारों का संगठन बनाया। वे एक छाया के रूप में हमेशा हम झारखंडियों के लिए खड़े रहे। जिनके संघर्ष के जरिये झारखंड बना आज वही लोग गुमनाम हैं, यह दुर्भाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि राज्य में सांस्कृतिक विरासत को संजोने वाले लोगों का सम्मान हो। इसके लिए एक और सांस्कृतिक आंदोलन की आवश्यकता है।
युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भूल रही है: मुकुंद नायक
पद्मश्री मुकुंद नायक ने कहा, आज मैं जो भी हूँ उसमें रणविजय जी की भूमिका काफी अहम है। कहा- हमारे पुरखे लोगों के सपने आज भी अधूरे हैं। हमारी युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भूल रही है। इसलिए हम सबों को अपने अखरे को बचना होगा। अखरा नहीं बचेगा तो हम नहीं, हमारा कोई अस्तित्व भी नहीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में झारखंड की जो दुर्गति है, वही स्थिति देश की भी है। हम सबों को मिलकर इसे बचाना होगा।
लाल साहब में नहीं था घमंड: सीडी सिंह
वरिष्ठ आंदोलनकारी कवि सीडी सिंह ने रणविजय नाथ शाहदेव के साथ बीते समय को साझा करते हुये कहा, लाल साहब ने अपनी पूरा धन सम्पति झारखंड के लोगों के कल्याण में लगा दिया। राज घराने परिवार से होने का तनिक भी उनमे घमंड नहीं था।
कभी सिद्धांतों से नहीं किया समझौता: दीन बंधु लोहरा
वरिष्ठ झारखंड आंदोलनकारी दीनबंधु लोहरा ने कहा, लाल रण विजय नाथ शाहदेव अपने आप में एक संस्था थे। झारखंड आंदोलन के दौरान कभी भी नीतियों और सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। बगैर किसी लोभ लालच के वह पूरे झारखंड का दौरा करते थे।
कई जगहों पर होंगी सभाएं
कार्यक्रम का संचालन जिला प्रभारी कुमोद वर्मा, विषय प्रवेश डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, धन्यवाद ज्ञापन प्रवक्ता पुष्कर महतो ने किया।
पुष्कर महतो ने कहा, लाल रण विजय नाथ शाहदेव की जयंती को सांस्कृतिक दिवस के रूप में मनाया गया। बजट सत्र में 25000 झारखंड आंदोलनकारी 81 विधायकों का घेराव करेंगे। 7 फरवरी को पटमदा में झारखंड आंदोलनकारी सभा, 15 फरवरी को जामताड़ा में झारखंड आंदोलनकारी सभा एवं 17 फरवरी को गिरिडीह जिला के डुमरी में उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का झारखंड आंदोलनकारी महाजुटान सम्मेलन आयोजित होगा।
डॉ अजय नाथ शाहदेव के द्वारा प्रसिद्ध कविता नरसिम्हा बाजी अब फिर नागपुर देस में और डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो के द्वारा कोलकाता के अनिमादिक माईति की रचित नागपुरी कविता हे महान कवि लाल रण का पाठ किया गया।
इनकी रही मौजूदगी
कार्यक्रम में डॉ प्रणव कुमार, मांदर सम्राट मनपुरन नायक, भाई गोकुल चंद कावरिया, लाल अजय नाथ शहदेव, शारदा देवी, अवधेश कुमार सिंह, गीता सिंह, मधुसूदन सिंह, अनिल उरांव, गणेश साहु, कर्नल देव, लापुंग के कमलेश सिंह, तोरपा के जुनस बारला, मधुसूदन सिंह, बिरसा मुंडा, संदीप कुमार महतो, अनाम ओहदार, एतवा मुंडा, सुचिता सिंह, सर्जन हासदा सहित अन्य बड़ी संख्या में झारखंड आंदोलनकारी एवं संस्कृतिप्रेमी उपस्थित थे।