
नागपुरी साहित्य जगत में प्रकाशपुंज नक्षत्र की तरह चमकने वाला सितारा आज हमेशा के लिए अस्त हो गया। नागपुरी भाषा-साहित्य के विद्वान डॉ. भुवनेश्वर अनुज का जाना केवल झारखंड के लिए ही एक क्षति नहीं, बल्कि वैसे लोगों के लिए भी एक बड़ा नुकसान है, जो झारखण्ड को अच्छे से समझने और जानने की चाहत रखते हैं। हालांकि उनसे मेरा रिश्ता काफी पुराना रहा है, बचपन से अबतक अभिवावक के रूप में हमेशा उन्हें अपने पास पाया। मेरे पिताजी स्व. प्रताप महतो के साथ उनकी घरेलू घनिष्ठता थी। उनकी गोद में मुझे पलने-बढ़ने का सौभाग्य मिला। वह मुझसे हमेशा कहा करते थे – बेटा, खूब पढ़ो, जितना पढ़ोगे उतना अपने को गढ़ पाओगे। जीवन में आगे बढ़ने की हमेशा उनसे प्रेरणा मिलती रही। वर्तमान में थोड़ी व्यस्तता के कारण मिलना कम हुआ था, लेकिन उन्होंने कहीं से यह महसूस नहीं होने दिया कि उनसे कोई अब नाता नहीं रहा हो।
85 वर्षीय डॉ. भुवनेश्वर अनुज एक प्रसिद्ध भाषाविद, नागपुरी लोक साहित्य के अध्येता व अनेकों पुस्तकों के रचयिता, कई राष्ट्रीय व स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं के संपादक-प्रकाशक, एक शिक्षाविद और झारखंड आंदोलनकारी थे। उन्होंने नागपुरी भाषा-साहित्य के उत्तरोत्तर विकास, संरक्षण व संवर्धन के लिए जीवनपर्यन्त प्रयास किया।
सुदूरवर्ती ग्रमीण इलाकों में कई स्कूल व कॉलेज खोले। कई बेहतरीन साहित्य की रचना की, जिसमें नागपुरी लोक साहित्य, अतीत के दर्पण में झारखंड, छोटानागपुर के प्राचीन स्मारक, झारखंड के शहीद, सीतक बूंद, नागपुरी और उसका लोकमानस, नागपुरी लोक साहित्य, नागपुरी पद्य लोक साहित्य, नागपुरी गद्य लोक साहित्य प्रमुख हैं। इसके अलावा कई पुस्तकों का उन्होंने संपादन भी किया है, जिसमें मुख्य रूप से दुई डाइर बीस फूल, एक झोपा नागपुरी फूल, खुखड़ी रूगड़ा हैं।
✍डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, सहायक प्राध्यापक, यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ टीआरएल, रांची यूनिवर्सिटी






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