♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में नागपुरी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गिरिधारी राम गौंझू के के निधन पर ऑनलाईन शोकसभा कर ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गयी।
सभी मिलकर अधूरे सपने को पूरा करेंगे: डाॅ हरि उरांव
टीआरएल विभाग के अध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने डॉ गौंझू के साथ बीते हुए क्षण को साझा करते हुये कहा- डॉ गिरिधारी राम गौंझू का निधन पूरे प्रदेश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। जब वे चैनपुर कालेज, गोस्सनर कालेज व रांची कालेज में बतौर प्राध्यापक थे तब कभी भी कोई कक्षाएं खाली नहीं रहती थीं। उनका सभी विषयों पर समान रूप से अधिकार था। उन्होंने कहा कि डॉ गौंझू झारखंड की संस्कृति, भाषा और भौगोलिक परिपेक्ष्य में लेखन करने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। उन्होंने कई सपनें देखें थे जो अधूरा रह गया। हम सबों का दायित्व होगा कि उनके अधूरे सपने और कार्यों को पूरा करें, तभी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
डाॅ गौंझू के निधन से झारखंड को बड़ी क्षति: डाॅ कुमारी बासन्ती
टीआरएल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ कुमारी बासन्ती ने डॉ गौंझू के निधन पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुये कहा कि सर्वगुण संपन्न विद्वान डॉ गिरधारी राम गौंझू हिंदी और नागपुरी भाषा के मर्मज्ञ थे। उनकी रचनाओं में झारखंडी संवेदना सहज ही झलकती थी। उन्होंने झारखंडी भाषा व संस्कृति को एक नया मुकाम देने का काम किया। ऐसे विद्वान व्यक्ति का अचानक चले जाना पूरे झारखंड के समाज के लिये एक बहुत बड़ी क्षति है।
जनसरोकार से जुड़े हुए थे: डाॅ टीएन साहु
रांची विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ त्रिवेणी नाथ साहु ने कहा- सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से डॉ गिरिधारी राम गौंझू का सीधा सरोकार था। वह आम जनजीवन से मिलकर काफी खुश रहते थे। छात्र-छात्राओं, शोधकर्ताओं और संस्कृति कर्मियों को हमेशा प्रोत्साहित करते और सहयोग भी करते थे।उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सहजता से भुलाया नहीं जा सकता है।
डाॅ गौंझू ज्ञान के महासागर थे: डाॅ यूएन तिवारी
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि डॉ गौंझू ज्ञान के मामले में महासागर थे। अदभुत व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि वह हमेशा दूसरों की सहायता के लिये सहज ही उपलब्ध रहते थे। कोई भी व्यक्ति उनके दरवाजे से आज तक बैरंग नहीं लौटा। डॉ गौंझू के जाने से नागपुरी जगत में शून्य पैदा हो गया है।
डाॅ गौंझू की कमी महसूस होती रहेगी: डाॅ बीरेन्द्र कुमार महतो
प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने कहा- गुरुदेव, मार्गदर्शक डॉ गौंझू के न होने की कमी काफी समय तक महसूस होती रहेगी। उनका जाना झारखंड की भाषा व संस्कृति के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने कहा कि वाकई में डॉ गौंझू एक चलता फिरता ज्ञानकोश थे। वह अपनी बहुआयामी व्यक्तित्व और विद्वता के लिये हमेशा हमारे बीच जीवित रहेंगे।
डाॅ गौंझू की वजह से हमारा अस्तित्व: डाॅ अंजु
प्राध्यापिका डॉ अंजु साहु ने कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूँ उसके पीछे अभिभावक गुरु डॉ गिरिधारी राम गौंझू का बहुत बड़ा हाथ रहा है। उनके बदौलत ही आज इस मुकाम तक पहुँच पायी हूँ। उन्होंने कहा कि डॉ गौंझू ने ही मुझे उच्च शिक्षा के लिये प्रेरित किया। हर सुख-दुःख में एक परछाई की तरह हमेशा साथ रहे। उन्होंने कहा कि डॉ गिरिधारी राम गौंझू नहीं होते तो आज हमारा अस्तित्व नहीं होता।
इन्होंने भी गहरी शोक संवेदना व्यक्त की
यूरोपियन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट एंड ईस्ट कर्न इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियाई स्टडीज, लेडन नीदरलैंड प्रोफेसर डॉ मोहन कान्त गौतम, यूनिवर्सिटी ऑफ कील, जर्मनी के भाषावैज्ञानिक डॉ नेत्रा पी. पौडयाल, नेपाल के भाषाविद सह वरिष्ठ साहित्यकार बेचन उराँव, प्राध्यापक डॉ खालिक अहमद, डॉ समरिता बड़ाईक, डॉ सविता केशरी, डॉ प्राध्यापक किशोर सुरिन, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ सरस्वती गागराई ने अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की।







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