रांची विवि के टीआरएल विभाग में मना विश्व आदिवासी दिवस, वीसी ने कहा- जनजातीय समुदाय पर दुनिया को गर्व है

♦Dr BIRENDRA KUMAR MAHTO♦
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुए सोमवार को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर परिचर्चा आयोजित की गयी। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने तथा धन्यवाद प्राध्यापक डॉ निरंजन कुमार ने किया। परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में रांची विश्वविद्यालय की प्रभारी कुलपति डॉ कामिनी कुमार ने आदिवासी समाज के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा- जनजातीय अस्तित्व और उनकी समास्याओं के निराकरण करने के लिये इस दिवस का काफी महत्व है। आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं।


रांची विश्वविद्यालय की प्रभारी कुलपति डॉ कामिनी कुमार ने कहा- टीआरएल विभाग में नौ भाषाओं के लिये अलग अलग विभागाध्यक्ष की नियुक्ति जल्द की जायेगी। नयी शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुये अगले सत्र में अन्य विषयों में स्नातक पास करने वाले छात्र भी टीआरएल विभाग में नामांकन करा सकेंगे।
बताया विश्वविद्यालय कर्मचारियों के लिये 960 पद सृजित किये गये हैं। शिक्षकों के पदों का रोस्टर क्लीयर कर दिया गया है। जिन की प्रोन्नति काफी लम्बे समय से रूकी हुई है उन शिक्षकों की प्रोन्नति के लिए कोशिश की जा रही है


समुदाय में रहकर ये अपनी कार्यों का निर्वहन करते हैं। गर्व की बात है कि आजादी का बिगुल इन्हीं आदिवासी समुदाय के द्वारा सबसे पहले फूंका गया था। पूरी दुनिया को बचाये रखने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। वे सदियों से अपनी परम्परा और संस्कृति को सीने से लगाये रखे हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में कुल आदिवासियों की संख्या करीब 37 करोड़ है। कहा- रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की पहचान पूरे विश्व में हो, यह मेरी कोशिश होगी। विभाग के माध्यम से समाज में शैक्षिक माहौल तैयार किया जायेगा।

अस्तित्व और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहा है आदिवासी समुदाय : डॉ हरि उरांव
अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा कि आज पूरे विश्व में आदिवासियों व मूलनिवासियों की दशा व दिशा पर चर्चाएँ हो रही हैं। कहा- आदिवासियों के विकास की बातों को धरातल पर उतारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज आदिवासी लोगों को अपने अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आज दुनियाभर में नस्लभेद, रंगभेद, उदारीकरण जैसे कई कारणों की वजह से आदिवासी समुदाय के लोग अपना अस्तित्व और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

आदिवासियों के लिए सच्चे दिल से काम करना होगा : डॉ उमेश नंद तिवारी
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा- आदिवासी समाज सबसे सम्पन्न, सुखी और खुशहाल है। वे प्रकृति के सबसे नजदीक होते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया को जीवन जीने का तौर तरीका सीखाने वाले आदिवासी समुदाय सदियों से मुख्य धारा के समाज के द्वारा छले जाते रहें हैं। इन आदिवासियों के चहुंमुखी विकास के लिये सच्चे दिल से काम करने की जरूरत है।
भाषा-संस्कृति का करना होगा विकास : डॉ दमयन्ती
डॉ दमयन्ती सिंकु ने कहा कि जब तक आदिवासियों की भाषा संस्कृति का विकास नहीं होगा तब तक आदिवासियों का विकास संभव नहीं है।
जनजातीय भाषाओं को संरक्षित करना होगा : डॉ सरस्वती
डॉ सरस्वती गागराई ने आदिवासी समुदाय के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा, आज आदिवासी समाज को बचाना है तो सबसे पहले उनकी भाषाओं को संरक्षित कर उसे रोजगार से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिये। आदिवासी भाषाओं की लिपियों में पठन पाठन की व्यवस्था प्राथमिक स्तर से किया जाना चाहिये।
इनकी रही मौजूदगी
गुरुचरण पूर्ति ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर टीआरएल विभाग के प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ निरंजन कुमार, डॉ किरण कुल्लू, महामनी उराँव, अमिया सुरिन, डॉ तारकेश्वर महतो, जय प्रकाश उराँव, करम सिंह मुंडा, बीरेन्द्र उराँव, सुखराम, बसंत कुमार, पप्पू बांडों उपस्थित थे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *