युवा साहित्यकार डॉ. बीरेन्द्र कुमार महतो द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘नागपुरी भासा-ब्याकरन: एक अध्ययन’’ शिवांगन पब्लिकेशन, रांची-पटना के सौजन्य से पाठकों के समक्ष पुर्नप्रकाशन प्रस्तुत हुई है। यह पुस्तक एक बड़ी जरूरत की पूर्ति करती है, क्योंकि नागपुरी भाषा में साहित्य-रचना की परंपरा काफी दीर्घ है और इसका रूप भी बहुत हद तक स्थिर हो चला है। डॉ. बीरेन्द्र ने इसी के मद्देनजर नागपुरी भाषा और व्याकरण को काफी मेहनत-मशक्कत से लिखा है। कुल 39 अध्यायों में पूरी हुई यह पुस्तक नागपुरी व्याकरण के लगभग सभी पहलुओं को उजागर करती है। संदर्भों के उल्लेख से पुस्तक की प्रामाणिकता असंदिग्ध है।
पुस्तक ‘भासा का हेके’ (पहला अध्याय) शीर्षक से शुरू होती है और 39वें अध्याय में ‘वस्तुनिस्ट सवाल-जबाब’ पर जाकर पूर्णता प्राप्त करती है। डॉ. बीरेन्द्र जी पुस्तक के पहले अध्याय में ही अपनी जमीनी दृष्टि का परिचय देते हुए कहते हैं – ‘‘लोक परंपरा, जे नागपुरी भासा-साहित के समृद्ध करलक।’’ यानी नागपुरी लोक-भाषा से साहित्यिक भाषा के दायरे में प्रवेश कर चुकी है, परंतु इसकी जड़ें अब भी लोक में ही है।
पुस्तक समीक्षा:डॉ. मिथिलेश
पहले अध्याय से लेकर ग्यारहवें अध्याय तक नागपुरी भाषा, उसकी लिपि, ध्वनियों, आर्य भाषा परिवार और नागपुरी, झारखंड की अन्य भाषाओं पर उसके प्रभाव, नागपुरी व्याकरण की अध्ययन परंपरा, नागपुरी की लिपि समस्या, शिक्षण के संदर्भ में उसके महत्त्व और नागपुरी के क्षेत्रीय रूप और उसके मानकीकरण के प्रश्नों पर संक्षिप्त किंतु विचारोत्तेजक टिप्पणियाँ दर्ज हैं। बारहवें अध्याय से नागपुरी व्याकरण के विविध पहलुओं पर चर्चा शुरू हुई है, जो बत्तीसवें अध्याय में जाकर पूरी होती है। 12वें से 32वें अध्याय के दरम्यान नागपुरी ध्वनि, संगया, बाक्या रचना, अपनिहिति कर परजोग, बरनमाला कर नियम, भासा आउर बेयाकरन, स्वर आउर बेयंजन, बाच्य, बिसेसन, किरिया-बिसेसन, लिंग, बचन, सरबनाम, काल, किरिया, कारक, समास, उपसरग आउर परतय, बिलोम सब्द, ढेइर सब्द कर एगो सब्द, रोजदिना बेवहार में आवेक वाला बाक्य और पर्यायबाची सब्द – सरीखे शीर्षकों के अंतर्गत व्याकरणिक विशेषताओं की व्याख्या हुई है।
डॉ. बीरेन्द्र जी सिर्फ व्याकरण पर ही अपनी बात खत्म नहीं करते वरन् नागपुरी के रचना-पक्ष से भी अवगत कराते हैं। 33वें अध्याय से 37वें अध्याय तक बीरेन्द्र ‘नागपुरी भासा कर कहावत आउर मुहाबरा, पहेली/बुझवइल, संछेपन, नागपुरी सब्दकोस आउर कोसकार’ जैसे शीर्षकों के माध्यम से इसके गवाक्षों को खोलने का महत्त्वपूर्ण काम करते हैं। 38वें अध्याय में किरिया-बिसेसन/बिसेसन/संगया/समास कर सब्द/बस्तु/खायक समान, जीव-जंतु, समय/बेरा बोधक, महिना/परब, संबंध/नाता-रिस्ता/राजबेवस्था/समान्य बोल-चाल, 1 से 100 तक गिनती, साल कर बारह महीना का विवरण देकर नागपुरी भाषा के सामर्थ्य का अहसास करा जाते हैं डॉ. बीरेन्द्र। ‘मुध रचना आउर रचनाकार’ शीर्षक के अंतर्गत 39वें अध्याय में बीरेन्द्र नागपुरी रचनाओं और रचनाकारों की एक सूची देते हैं, जो इसके अध्येताओं के लिए अत्यंत उपादेय है। इस अध्याय में लेखक नागपुरी के सृजनात्मक लेखन से लेकर नाटक, निबंध आदि से भी परिचित कराते हैं। नागपुरी सेवियों को पुरस्कार और सम्मान दिये जाते हैं उनसे भी वाकिफ कराने का प्रशंसनीय कार्य डॉ. बीरेन्द्र जी इसी अध्याय में करते हैं। 40वें अध्याय (अध्याय 39 के रूप में ही छपा हुआ है) के अंतर्गत नागपुरी भाषा और व्याकरण से संबद्ध 490 प्रश्नों की भरी-पूरी श्रृंखला और तत्पश्चात् उनके उत्तर प्रस्तुत हैं। अंत में संदर्भ ग्रंथों का हवाला भी लेखक ने दिया है।
कुल मिलाकर यह पुस्तक शोधार्थियों, विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होने के आकांक्षी अभ्यर्थियों के लिए व्यापक रूप से उपयोगी बन पड़ी है। डॉ. बीरेन्द्र जी ने पूरे मनोयोग से इस कार्य को पूरा किया है, लेकिन नागपुरी भाषा के क्षेत्र-विस्तार पर पुस्तक पर पुस्तक में कोई अध्याय नहीं है, यदि होता तो क्या बात होती। नागपुरी साहित्य के इतिहास के लेखन का दायित्व भी ये निभायेंगे, इसी उम्मीद के साथ डॉ. बीरेन्द्र जी को बधाई।