द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर टीआरएल संकाय में जश्न, मांदर, ढोल व नगाड़े की थाप पर झूमे शिक्षक और छात्र

रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग को नया स्वरूप कुलाधिपति रहते द्रौपदी मुर्मू के प्रयास से ही दिया जा सका। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ-साथ उन्हीं की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण एक छत के नीचे 9 जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं का अलग-अलग विभाग स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आया।


♦Laharnews.com Correspondent♦
  रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल सह कुलाधिपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी है।  इस मौके पर विभाग के समन्वयक डॉ हरि उराँव की अगुवाई में सभी नौ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागों के अध्यक्ष सहित शिक्षकों, शोर्धािथयों और छात्र-छात्राओं ने मांदर, ढोल, नगाड़ों की थाप पर अपनी खुशी का इजहार किया। जमकर झूमे और मिठाइयां बांटीं।


राज्यपाल रहते हुए जब उनका काफिला जनजातीय भाषा विभाग के पास से गुजर रहा था तो उन्होंने अपनी गाड़ी रूकवाकर इस विभाग की जर्जर हालत देखकर इसके कायाकल्प करने की ठानी। इतना ही नहीं राजभवन में उन्होंने करमा पर्व और सरहुल पर्व मना कर एक नयी परम्परा की शुरुआत भी की थी।


गौरतलब है कि रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग को नया स्वरूप कुलाधिपति रहते द्रौपदी मुर्मू के प्रयास से ही दिया जा सका। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ-साथ उन्हीं की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण एक छत के नीचे आज 9 जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं  का अलग-अलग विभाग स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आया। उनके राष्ट्रपति बनने की खुशी के मौके पर गाजे बाजे व गीत नृत्य के साथ जश्न मनाया गया। मांदर, ढोल और नगाड़ों की थाप पर और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर जश्न में सभी ने डूबकी लगायी। इस अवसर पर शिक्षकों ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना खासकर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के लिए एक यादगार पल है। यहां के शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थी काफी प्रसन्न हैं। उन्हें उम्मीद जगी है कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू उतना ही रांची और इस विभाग के लिए समर्पित रहेंगी, जितना राज्यपाल रहते हुए उन्होंने विभाग के लिए अपना समर्पण दिखाया था। राज्यपाल रहते हुए जब उनका काफिला जनजातीय भाषा विभाग के पास से गुजर रहा था तो उन्होंने अपनी गाड़ी रूकवाकर इस विभाग की जर्जर हालत देखकर इसके कायाकल्प करने की ठानी। इतना ही नहीं राजभवन में उन्होंने करमा पर्व और सरहुल पर्व मना कर एक नयी परम्परा की शुरुआत भी की थी।

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