14 अगस्त पुण्यतिथि पर विशेष: झारखंड के साहित्य, इतिहास और आंदोलन के अहम हस्ताक्षर थे डॉ बीपी केशरी

स्व॰ डॉ. विसेश्वर प्रसाद केशरी
जन्म: 1 जुलाई 1933
पुण्य तिथि: 14 अगस्त 2016

डॉ. बी.पी. केशरी एक असाधारण व्यक्तित्व को अपने में आत्मसात किये हुए थे। वे बाहर से जितने सहज सरल और सादगी से परिपूर्ण थे अंदर से वैसे ही ज्ञान के भंडार थे। वे साथ ही साहित्यकार, पत्रकार इतिहासकार, पत्रकार, समाजशास्त्र, मनोवैज्ञानिक, कला आदि गुणों से संपन्न थे। इनकी जन्मभूमि राँची से 15 किलोमीटर दूर पिठोरिया ग्राम थी जहाँ 1 जुलाई 1933 को इन्होंने जन्म लिया। इनके पिता का नाम शिव नारायण साहु तथा माता का नाम लगन देवी था। इन्हीं की छत्र-छाया में रहकर गांव के स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा पूरी की और बाद में राँची के जिला स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की।


आखिरी सांस तक लिखते रहे

डॉ बीपी केशरी का लेखन कार्य जीवन के आखिरी साँस तक चलता रहा। इन्होंने लगभग दो दर्जन महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी । इन्होंने गीत, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, निबंध, लेख, संस्मरण, यात्रा-वृतांत जैसे साहित्य की सभी विधाओं पर लिखा। इनकी सभी पुस्तकों में झारखण्ड की मिट्टी की सुंगध रचीबसी हुई है। इसमें यहाँ के लोगों को घोर-उपेक्षा, पलायन, शोषण, दमन के दर्द को उजागर किया गया है, वही झारखण्ड की सांस्कृतिक विरासत की भी चर्चा की गयी है। इनकी आखिरी और महानतम पुस्तक ‘‘नागपुरी कवि और उनका काव्य’’ झारखण्डी समाज का दर्पण है।


सारा जीवन साहित्य साधना में व्यतीत

लेखिका: डॉ. सविता केशरी
सहायक प्राध्यापिका
नागपुरी भाषा विभाग
स्नातकोत्तर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग,
राँची विश्वविद्यालय, राँची

डॉ. केशरी आई.ए.सी. के छात्र थे लेकिन आगे चलकर स्नातक में इन्होंने हिन्दी प्रतिष्ठा में नामांकन लिया और सारा जीवन साहित्य साधना में व्यतीत किया। नागपुरी साहित्य में रमने का अथवा प्रेरणा का स्त्रोत नागपुरी के प्रसिद्ध लोक गीत ‘‘अम्बा मंजरे मधु मातलयें रे, तइसने पिया मातल जाय’’ नामक गीत बना। इस गीत की भाव प्रवणता, अभिव्यंजना शैली, लय ताल, उपमा अलंकार, शब्द संयोजन को देख-सुन कर अभिभूत हो गये और नागपुरी भाषा-साहित्य में जीवन अर्पित करने का मन बना लिया।
इसके बाद लगभग 1951 से ही नागपुरी गीतों की खोज में प्रफुल्ल कुमार राय, भरत नायक, नहन जी, मुकुन्द नायक, क्षितिज कुमार राय, प्रमोद कुमार राय आदि के साथ निकल पड़े। इन लोगों ने काफी गीतों का संकलन किया। डॉ. केशरी की पहली प्रकाशित पुस्तक ‘‘नागपुरी भाषा और साहित्य थी। इसमें नागपुरी भाषा के उद्भव-विकास को बताया गया साथ ही भोजपुरी, मगही से अंतर को भी स्पष्ट कर नागपुरी को स्वतंत्र भाषा के रूप में स्थापित किया गया। इस छोटी सी पुस्तक में कवि कंचन, जगनिवास नारायण तिवारी, लाल मनमोहन नाथ शाहदेव जैसे नागपुरी साहित्य के प्रकांड विद्वानों की काव्य-साधना को प्रकाश में लाया गया।

नागपुरी गीतों पर  शोध
सन् 1957 में डाल्टनगंज के जी.एल.ए. कॉलेज में इनकी नियुक्ति प्राध्यापक के रूप में चुकी थी। इस समय इन्होंने शोध प्रबंध लिखने का मन बनाया और ‘‘नागपुरी गीतों में श्रृंगार रस’’ नामक शोध पर अपना कार्य प्रारंभ किया। इस शोध प्रबंध के सिलसिले में सामग्री एकत्रित करने की जरूरत पड़ी तो फिर ये गाँव-गाँव जा कर काफी सामग्री अर्जन किया तथा लोगों से साक्षात्कार भी लिया। इस शोध के दरम्यान ही इनके पास ‘‘छोटानागपुर का इतिहास कुछ सूत्र, कुछ संदर्भ’’ लिखने की सामग्री एकत्रित हो गयी थी। शोध कार्य संपन्न होते ही इन्होंने छोटानागपुर का इतिहास कुछ सूत्र कुछ संदर्भ लिखना प्रारम्भ किया। इतिहास लिखना भी एक दुस्कर कार्य था जो आगे एकत्रित हो गयी थी। शोध कार्य संपन्न होते ही इन्होंने छोटानागपुर था इतिहास कुछ सूत्र कुछ संदर्भ लिखना प्रारम्भ किया। इतिहास लिखना भी एक दुसकर कार्य था जो आगे चलकर संपन्न हो गया। इस तरह इनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह जीवन के आखिरी साँस तक चलता रहा। इन्होंने लगभग दो दर्जन पुस्तकें लिखी जो सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों के रूप में जानी जाती है। इन्होंने गीत, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, निबंध, लेख, संस्मरण, यात्रा-वृतांत जैसे साहित्य की सभी विधाओं पर लिखा। इनकी सभी पुस्तकों में झारखण्ड की मिट्टी की सुंगध रचीबसी हुई है इसमें यहाँ के लोगों को घोर-उपेक्षा, पलायन, शोषण, दमन के दर्द को उजागर किया गया है वही झारखण्ड की ऊँच सांस्कृतिक विरासत को भी उजागर किया गया है। इनकी आखिरी और महानतम पुस्तक ‘‘नागपुरी कवि और उनका काव्य’’ झारखण्डी समाज का आइना है।

झारखण्ड अलग राज्य बनना एक बहुत बड़ा सपना था

झारखण्ड की धरती बलिदानों की धरती है। सिद्धु-कान्हु, चांद,भैरव, तिलका मांझी, तेलेगा खडिया, बिरसा मुण्डा, वीर बुद्धु भगत, गया मुण्डा, विश्वनाथ ठाकुर, गणपत राय, शेख भिखारी जैसे लोगों ने झारखण्ड की धरती को अंग्रेजों के जुल्म, शोषण, अत्याचार से मुक्त करने के लिए अपनी कुर्बानी दी। इनकी आवाज को बहुतों ने अनसूनी कर दी। यह बात केशरी जी को चुभती थी। देश की आजादी के बाद झारखण्ड प्रदेश बहुत, उपेक्षित, शोषित रहा। गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी अपनी चरम पर थी। विकास के नाम पर बड़े-बड़े कलकारखाने, डैम आदि बने और यहां के लोग उजड़ते चले गये। लोगों के साथ-साथ यहां की भाषा-साहित्य, संस्कृति, सभ्यता, कला सभी में गिरावट देखने को मिलने लगी। यहाँ जो पहले राजा थे वे रंक हो गये, जो मालिक थे वे नौकर हो गये, स्थिति बहुत विकट थी। इन्हीं सब कारणों से डॉ. केशरी झारखण्ड की राजनीति में सक्रिय सदस्य बन कर आंदोलन किया। झारखण्ड समन्वय समिति का गठन किया और उसके अध्यक्ष बने। अलग झारखण्ड राज्य की मांग के लिए दिन-रात आंदोलन और वार्ता किये। कई बार जेल भी गये। अखिर में 15 नवम्बर 2000 को झारखण्ड राज्य का निर्माण हुआ। ‘‘झारखण्ड अलग राज्य बनना इनका एक बहुत बड़ा सपना था, जो पूरा हुआ।

भाषाई आंदोलन 
इसी तरह यहां भाषा साहित्य को बचाने और उसकी विधिवत पढ़ाई के लिए भी भाषाई आंदोलन किये। 1980-82 में राँची विश्वविद्यालय में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना हुए जिसमें नागपुरी कुरमाली खोरठा, पंचपरगनिया, कुडुख, मुण्डारी, खडिया, हो और संथाली भाषा साहित्य की पढ़ाई सुचारू रूप से होने लगी। आज यहां से पढ़कर छात्र-छात्राएँ अच्छे-अच्छे पद पर प्रतिष्ठित है।

पिठौरिया गांव  में हुआ था जन्म
इन्होंने अपने जन्म गांव पिठौरिया में नागपुरी संस्थान (शोध एवं प्रशिक्षण) केन्द्र की स्थापना 2003 मंे किया। यहां नागपुरी साहित्य की। सैंकडों पांडुलिपियां, गीत लेख एवं बहुमूल्यवान पुस्तके सुरक्षित रखी हुई है। इन्होंने अपनी पुस्तकों में जहां झारखण्ड की खुबसुरती का चित्रण किया है वहीं झारखण्ड की अमीरी, शान, और गौरवान्वित सभ्यता-संस्कृति की बातों को अमेरिका, इंग्लैंड और जापान तक पहुचाया।

कई सम्मान से हुए सम्मानित

इन्हें अपने जीवन काल में अनेकों सम्मान से नवाजा गया है। विक्रमशीला विद्यापीठ भागलपुर द्वारा विद्यासागर (1982), लोक सेवा समिति द्वारा झारखण्ड, रत्न इस (1999) झारखण्ड साहित्य परिषद डालटनगंज द्वारा साहित्य शिरोमणी (2002) प्रभात खबर, राँची द्वारा झारखण्ड गौरव सम्मान (2009) कला संस्कृति विभाग, झारखण्ड सरकार द्वारा लाइफ, टाइम अचीभमंेट आवार्ड (2011-2012) में मिला। इसी तरह अनेकों सम्मान से नवाजा गया है। अभी तक हमलोगों को पद्म-श्री का इंतजार है।
डॉ. केशरी का व्यक्तित्व गागर में सागर भरने जैसा है। इनके व्यक्तित्व की तुलना हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान श्याम सुंदर दास, राम चन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और राम विलास शर्मा जैसे साहित्यनुरागियों से किया है। इनकी रचनाओं में इतिहास बोध, समाज बोध और रस-बोध तीनों एक साथ तरंगित होते है। 14 अगस्त- 2016 को इस महान व्यक्तिव का निधन हो गया। अब जरूरत है इन्हें संभाल कर रखने और इनके बताये मार्ग-दर्शन पर चलने की। ऐसे पिता पर हमें गर्व है, इन्हें मेरा शत् शत् नमन।

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