♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा की पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी। उनकी तस्वीर पर शिक्षकों, छात्रों और कर्मियों की ओर से पुष्प् अर्पित किये गये। उनके योगदान को याद किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक करम सिंह मुण्डा ने किया।
झारखंड की संस्कृति को विश्व में दिलायी पहचान: नलय राय
अध्यक्षता करते हुये मुंडारी विभाग के विभागाध्यक्ष नलय राय ने कहा कि डॉ रामदयाल मुंडा झारखंडी चेतना के अग्रदूत थे। वह झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश के एक प्रमुख बौद्धिक और सांस्कृतिक शख्सियत थे। उन्होंने आदिवासी और मूलवासियों के अधिकारों के लिये देश के विभिन्न प्रांतों से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक आवाज उठायी। साथ ही दुनिया के आदिवासी समुदायों को संगठित भी किया और झारखंड में जमीनी सांस्कृतिक आंदोलनों को नेतृत्व प्रदान किया। डॉ मुण्डा को अपने अंतिम समय तक झारखंड और झारखंडियो की चिंता रही। उन्होंने कहा कि डॉ मुंडा राजनीतिक क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे फिर भी उनका जीवन पूर्ण रूप से सामाजिक एवं सांस्कृतिक ही रहा। झारखंड की आदिवासी संस्कृति, लोकगीत, नृत्य एवं साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा की अहम भूमिका रही।
19 भाषाओं के जानकार थे: किशोर सुरीन
प्राध्यापक किशोर सुरीन ने कहा कि पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा का कोई जोड़ नहीं हो सकता है। डॉ मुण्डा एक विराट व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि वह सहज प्रवाह के साथ तकरीबन 19 भाषाओं के ज्ञाता थे। समग्र रूप से मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की सोच रखने वाले पद्मश्री डॉ मुंडा ने जे नाची, से बाँची का मूलमंत्र हम आदिवासी व सदानों को दिया। हमें एक सूत्र में बांधने का काम किया।
झारखंड के समाज में चेतना भरी: डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो
प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने कहा कि डॉ मुंडा पूरी दुनिया को झारखंडी संस्कृति से अवगत कराया। डॉ रामदयाल मुंडा ने झारखंड के समाज में आत्मगौरव और चेतना भरने का काम किया। उनके उद्देश्यों को हमें आत्मसात करने की आवश्यकता है।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे: डॉ रीझू नायक
प्राध्यापक डॉ रीझू नायक ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पद्मश्री डॉ राम दयाल मुंडा के जीवन का हमें अनुसरण करना चाहिये। उनकी सोच में दूरदर्शिता थी। उनकी उस सोच को हमें संजोग कर रखने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर विभाग के प्राध्यापकगण, शोधार्थी व कर्मचारीगण उपस्थित थे।