रांची विवि के टीआरएल संकाय में प्रो. मोहनकांत गौतम का व्याख्यान, कहा- अंग्रेजी को जाने बगैर हम अपनी भाषा को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा नहीं बना सकते

♦डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो♦ 
  रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में शुक्रवार को ईस्ट एंड वेस्ट यूनिवर्सिटी नीदरलैंड के पूर्व चांसलर प्रोफेसर डॉ मोहनकांत गौतम ने अंतःसंबंध भाषाओं की अतीत, वर्तमान एवं भविष्य: विश्व परिदृश्य में  विषय पर विशेष व्याख्यान दिया। प्रोफेसर डॉ गौतम ने कहा कि बोली का साहित्य नहीं है तो वह भाषा नहीं हो सकती, ऐसी बात नहीं है। वह भी एक भाषा है। सबसे बड़ी बात यह है कि हम अपने परिवार को समझें और आपसी संप्रेषण को कायम रखें। भाषा के प्रति जो भावनाएँ आपके अंदर है उसे प्रगाढ़ बनाने के लिए आदिवासियों के साथ सहयोगात्मक रवैया रखें।


संसार की लगभग 3000 भाषाएँ समाप्त हो गयी। ऐसे हालात में हम अपनी भाषा को कैसे बढ़ाये, कैसे समृद्ध करें। इस दिशा में पहल होनी चाहिए। अपनी भाषा को बोलना और लिखना सीखें।


उन्होंने कहा कि हमें दूसरी भाषाओं का भी ज्ञान रखना चाहिए। चूंकि संस्कृति की रिफ्लेक्सन ही सभ्यता है। इसलिए भाषा की दृष्टि से दूसरे देशों में आदिवासियों की भाषा कैसे बढ़ी, इस पर बात पर शोध होनी चाहिए। संसार की लगभग 3000 भाषाएँ समाप्त हो गयी। ऐसे हालात में हम अपनी भाषा को कैसे बढ़ाये, कैसे समृद्ध करें। इस दिशा में पहल होनी चाहिए। अपनी भाषा को बोलना और लिखना सीखें। उन्होंने कहा कि भारत में पांच पारिवारिक भाषाएँ बोली जाती हैं। आदिवासियों की भाषा में जो मिलता है, वह हिन्दी संस्कृति में नहीं पाया जाता है। दूसरी भाषाओं की सामग्री को, जिसमें बच्चों का खेल, व्यंग्य, संवाद आदि को अनुवाद करके नये भाषा को सीखा जा सकता है। साथ ही अपनी भाषा की अंतरराष्ट्रीय पहचान कैसे बने, इस दिशा में हमें बात करनी चाहिए। अंग्रेजी भाषा को जाने बगैर हम अपनी भाषा को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा नहीं बना सकते।

स्कूलों में प्राथमिक स्तर से मातृभाषा की पढ़ाई होनी चाहिए

प्रोफेसर डॉ गौतम ने कहा कि स्कूलों में प्राथमिक स्तर से मातृभाषा की पढ़ाई होनी चाहिए, ताकि शुरू से बच्चे अपनी भाषा के प्रति सजग व जागरूक हो सकें। अन्य भाषा सीखकर सेतु का भी काम करें। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को हम अपना समझें। आप जो लिखेंगे वह आपको पाठक वर्ग को ध्यान में रख कर लिखना होगा। नये कंसेप्ट के साथ काम करने की आवश्यकता है, तभी पूरी दुनिया उसे स्वीकार करेंगी। उन्होंने उपस्थित शोधकर्ताओं एवं छात्रों को भाषाओं की अतीत, वर्तमान एवं भविष्य के विभिन्न पहलुओं पर सूक्ष्मता पूर्वक चर्चा करते हुये झारखंड प्रदेश की भाषायी, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं कई अन्य पहलूओं पर शोध कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
व्याख्यानमाला के अंत में कई प्राध्यापक, शोधकर्ताओं एवं छात्रों ने प्रोफेसर डाक्टर गौतम से अनेकों प्रश्न किये, जिसका उन्होंने उत्तर दिया। व्याख्यानमाला में स्वागत भाषाण समन्वयक डॉ. हरि उराँव , धन्यवाद नागपुरी विभाग के अध्यक्ष डॉ उमेश नन्द तिवारी किया।
इनकी रही मौजूदगी
मौके पर मुण्डारी विभाग के विभागाध्यक्ष नलय राय, मनय मुंडा, डॉ सविता केसरी, डॉ राम किशोर भगत, कुमारी शशि, डॉ गीता कुमारी सिंह, डॉ. बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ रीझू नायक, किशोर सुरिन, डॉ बीरेन्द्र कुमार सोय, करम सिंह मुंडा, राजकुमार बास्की, प्रेम मुर्मू, डॉ दमयन्ती सिन्कू, डॉ किरण कुल्लू, डॉ राकेश किरण, डॉ सरस्वती गागराई, दिनेश कुमार, बीरेन्द्र उराँव, डॉ धीरज उराँव, रमाकांत महतो, डॉ उपेन्द्र कुमार, गुरुचरण पूर्ति, नितेश कुमार के अलावा विभाग के शिक्षकगण, शोधकर्ता व छात्र-छात्राएँ मौजूद थे।

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