♦डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ♦
रांची: रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में शनिवार को इंटर यूनिवर्सिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट कॉरपोरेशन एण्ड इंस्टीट्यूट फॉर द ह्यूमिनिटी, जापान के भाषा वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ तोशिकी ओसादा ने झारखंडी एवं जापानी भाषाओं का अंतःसंबंध विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।
व्याख्यानमाला में डॉ तोशिकी ओसादा ने कहा कि किसी भी हालत में हमलोगों को अपनी भाषा और संस्कृति नहीं छोड़नी चाहिए। अपने पारम्परिक ज्ञान से आने वाली पीढ़ी को भी अवगत करायें, ताकि वे अपनी परम्परा को जान व समझ सकें। उन्होंने कहा कि हमें अधिक से अधिक अपनी भाषा में बातचीत करनी चाहिए। साहित्य लिखना चाहिए। एक दूसरे समुदाय की भाषाओं के शब्दों को आपस में विमर्श करना चाहिए। इससे शब्दकोश बनेगा। शब्द भंडार मजबूत होंगे।
डॉ तोशिकी ओसादा ने कहा कि किसी भी हालत में हमलोगों को अपनी भाषा और संस्कृति नहीं छोड़नी चाहिए। अपने पारम्परिक ज्ञान से आने वाली पीढ़ी को भी अवगत करायें, ताकि वे अपनी परम्परा को जान व समझ सकें।
प्रोफेसर ओसादा की सहयोगी, झारखंडी मूल की मधु ने मुण्डारी और जापानी भाषा व संस्कृति काफी बेहतर तरीके से बताया। उन्होंने शोधकर्ताओं एवं छात्रों को झारखंडी एवं जापानी भाषाओं का अंतःसंबंध के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुये झारखंड प्रदेश की भाषायी, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं कई अन्य पहलूओं पर शोध कार्य करने के लिये प्रेरित किया।
व्याख्यानमाला के अंत में कई प्राध्यापक, शोधकर्ताओं एवं छात्रों ने डॉ तोशिकी ओसादा से अनेकों प्रश्न किये, जिसका उन्होंने जवाब दिया। व्याख्यानमाला में स्वागत भाषण समन्वयक डॉ. हरि उराँव और धन्यवाद किशोर सुरिन ने किया। संचालन मुण्डारी विभाग के प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार सोय।
इस मौके पर मुण्डारी विभाग के विभागाध्यक्ष नलय राय, मनय मुंडा, नागपुरी भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ उमेश नन्द तिवारी, डॉ खालिक अहमद, मधु, डॉ सविता केसरी, डॉ. बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ रीझू नायक, करम सिंह मुंडा, डॉ सरस्वती गागराई, शकुन्तला बेसरा, डॉ अजीत मुण्डा के अलावा विभाग के शिक्षकगण, शोधकर्ता व छात्र-छात्राएँ मौजूद थे।