♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए टीआरएल संकाय के समन्वयक डॉ हरि उराँव ने कहा कि मातृभाषा को बचाने के लिये हमें अपनी संस्कृति को बचाना होगा। उन्होंने कहा कि जिस समाज में मातृभाषा का विकास नहीं हुआ, वह समाज और क्षेत्र विपुल संसाधनों के बावजूद भी कभी विकास नहीं कर सका। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिये।
मातृभाषा भाषा के बगैर अस्तित्व नहीं : डॉ यूएन तिवारी
डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि जिस समाज की अपनी मातृभाषा और अपनी संस्कृति नहीं होती है उस समाज की अपनी कोई पहचान नहीं बन पाती है। मातृभाषा भाषा के बगैर हमारा कोई भी अस्तित्व नहीं है।
लुप्त हो रही भाषाएं चिंता का विषय : डॉ खालिक अहमद
डॉ खालिक अहमद ने कहा कि भाषा अपने समाज की प्रतिबिम्ब होती है, यदि वह संरक्षित व सुरक्षित नहीं रहेगी तो प्रतिबिम्ब की कल्पना नहीं की जा सकती है। लुप्त हो रही भाषाओं पर सिर्फ चिंता व्यक्त करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है बल्कि हम सबों को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा।
मातृभाषा की रक्षा सभी का दायित्व : डॉ रीझू नायक
डॉ रीझू नायक ने कहा – मातृभाषा की रक्षा का दायित्व हम सभी का है। भाषा के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इन भाषाओं पर रिसर्च करना होगा, स्कूली स्तर पर इन्हें बढ़ावा देना होगा, इन्हें रोजगार परक बनाना होगा, वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए इन्हें तैयार करना होगा तथा इन भाषाओं का सरलीकरण करना होगा आदि के माध्यम से सरकार और समाज दोनों मिलकर स्थानीय भाषाओं को बचा सकते हैं।
इन्होंने भी रखे विचार
संगोष्ठी में डॉ मेरी एस सोरेंग, मनय मुण्डा, डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, करम सिंह मुंडा, वीरेंद्र उरांव, डॉ दमयंती सिंधु, डॉ सरस्वती गागराई, विक्की मिंज, प्रेम मुर्मू, राजकुमार बास्के, तारकेश्वर सिंह मुंडा, डॉ वीरेंद्र कुमार सोय ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किये। संचालन प्राध्यापक किशोर सुरीन तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ धीरज उराँव ने किया।
मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा केन्द्र के छात्रों एवं शोधार्थियों ने गीत प्रस्तुत किया. इस अवसर पर भाषा केन्द्र के प्राध्यापकगण, शिक्षकेत्तर कर्मचारीगण, शोधकर्तागण एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे।