रांची : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासियों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है। वे बेघर हुए हैं लेकिन किसी सरकार ने आदिवासियों की समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया। विश्व आदिवासी दिवस में मौके पर आयोजित दो दिवसीय आदिवासी महोत्सव के उद्घाटन मौके पर उन्होंने केन्द्र और कोल कंपनियों पर भी हमला किया। कहा, हमारा झरिया शहर बरसों से आग की भट्ठी पर तप रहा है लेकिन कोयला कंपनियां और केंद्र कान में तेल डालकर सोयी हुई है ।
80 फीसदी आदिवासी बेघर हुए
अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने विस्थापन के दर्द का भी जिक्र किया उन्होंने कहा, लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है एवं केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये । हमारी व्यवस्था कितनी निर्दयी है ? कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहाँ गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गए लोग ? खदानों, उद्योगों, डैमों से विस्थापित हुए, बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। आदिवासियों की बदहाली पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा- कल का किसान आज साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है। बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश हैं। बिना पुनर्वास किये एक्ट बनाकर लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनियों को दिया गया।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इतिहासकारों पर भी आदिवासियों के साथ बईमानी का आरोप लगाया अपने संबोधन में उन्होंने आगे कहा, आखिर इस विकास को आदिवासी समाज कैसे अपना मान सकता है ? आखिर विकास की चपेट में किनकी जमीन गयी है ? किनकी रोजी-रोटी छीनी गई है ? किनकी भाषा खत्म हो रही है ? किनकी संस्कृति खतरे में है ? क्या इसका जायजा सत्ता को नहीं लेना चाहिए था ? जो विकसित हुए हैं वे कौन हैं ?तथाकथित मुख्यधारा के इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की है। उन्होंने उनका इतिहास ही दर्ज नहीं किया और न ही देश के विकास में आदिवासियों के योगदान को चिन्हित किया गया। चाहे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध हो या महाजनों के जुल्म के खिलाफ संघर्ष या फांसी पर लटकने की हिम्मत हो या अंतिम आदमी के रूप में लड़ते हुए मर जाने का साहस, इनमें अगुआई के बावजूद इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी ।