♦Laharnews.com Correspondent♦
रांची : रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर संगोष्ठी आयोजित हुई। संगोष्ठी में टीआरएल संकाय के समन्वयक डॉ हरि उराँव ने कहा कि पूरे विश्व में यदि पर्यावरण की रक्षा कोई कर रहा है तो वह आदिवासी समाज है। आदिवासी समाज ही एक ऐसा समाज है जिसने सभ्य समाज को जीने का सलीका सिखाया। आज आदिवासीयत की जीवन शैली से पूरा विश्व प्रेरणा ले रहा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति व पर्यावरण की चिंता आदिवासी समाज सदियों से ही करता रहा है। आदिवासी समाज प्रकृति व पर्यावरण का पूजन, संरक्षण और संवर्द्धन सदियों से कर रहा है। जल, जंगल और जमीन के संरक्षण में इनकी भूमिका अव्वल रही है।
एकसूत्र में बांधने के लिए मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस : डॉ यूएन तिवारी
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि कि कि आदिवासी दिवस सही मायने में आदिवासियों के उत्थान और उनके अस्तित्व की रक्षा के लिए मनाया जाता है। पूरी दुनिया के आदिवासियों को एकसूत्र में बांधने के ख्याल से विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।
प्रकृति की रक्षा में आदिवासियों का योगदान अहम : डॉ रीझू नायक
प्राध्यापक डॉ रीझू नायक ने कहा कि आज पूरी दुनिया बची है, हमारी प्रकृति बची है, हमारी संस्कृति बची है, तो इसे बचाए रखने में दुनिया के आदिवासियों, मूलवासियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हमें उनके इस योगदान को नहीं भूलना चाहिए। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर हमें आदिवासियों की संस्कृति, उनकी भाषा, उनके अस्तित्व की रक्षा, उनमें अशिक्षा कैसे दूर हो, इन तमाम बातों पर गहन मंथन, चिंतन करने की आवश्यकता है।
इन्होंने भी किया संबोधित
प्राध्यापक डॉ मनय मुण्डा ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस ऐतिहासिक दिवस है। यह दिवस आदिवासियों के विकास और उत्थान के लिए शुरू किया गया, साथ ही आदिवासियों के पिछड़ेपन को दूर कर उन्हें आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का यह दिन है।
प्राध्यापिका शकुंतला बेसरा ने कहा कि आज का दिन हम आदिवासियों के लिए बहुत ही अहम दिन है। हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि आज हमारी प्रकृति, संस्कृति बची हुई है, तो इसमें आदिवासियों का बहुत बड़ा योगदान है.
कार्यक्रम का संचालन डॉ बीरेन्द्र कुमार सोय ने किया। इस मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय सहायक प्राध्यापक, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद थे।